Akshay Tritya || सोने पे सुहागा लेकर आ रही है अक्षय तृतीया || Suresh Shrimali


सोने पे सुहागा लेकर आ रही है अक्षय तृतीया


    अक्षय का मतलब ही है जिसका क्षय न हो और अक्षय तृतीया पर किए गए दान का फल अनंत गुणा प्राप्त होता है। चन्द्र गणना में सभी तिथियों का क्षय होता है लेकिन तृतीया तिथि का कभी क्षय नहीं होता। इसीलिए इसे अबुझ सावा मानकर बिना मुहूर्त पूछे विवाह करने की परम्परा है। इस बार की अक्षय तृतीया सोने पर सुहागा लेकर आ रही है। 18 अप्रैल, बुधवार के इस दिन बन रहे संयोग इस पवित्र दिन के महत्व को बढ़ा रहे है। अक्षय तृतीया के दिन ग्रहों का विशेष संयोग बनता है। इस दिन सूर्य और चन्द्रमा दोनों ही अपनी उच्च राशि में होते है। ऐसा खास संयोग साल में सिर्फ अक्षय तृतीया पर ही बनता है। इस दिन सूर्य मेष में और चन्द्रमा, वृषभ राशि में होते है। इस बार इन सब संयोगों के साथ कृतिका नक्षत्र तथा सर्वाथ सिद्धि योग भी बन रहे है जो मंगलकारी मुहूर्त है।

‘‘शुभ कार्यों का अक्षय फल’’।।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चन्द्र मास व सौर मास में तिथियों का घटना बढ़ना, क्षय होना होता है, लेकिन तृतीया तिथि का कभी भी क्षय नहीं होता है। तृतीया तिथि की अधिष्ठात्री देवी माँ पार्वती जी है। मान्यता है कि, यदि किसी को अच्छे कार्य करने के लिए कोई शुभ मुहूर्त नहीं मिल पा रहा है, कार्य में बाधाएं यानि अड़चने आ रही है, व्यापार में घाटा हो रहा है तो उनके लिए कोई भी नई शुरूआत करने के लिए, किसी शुभ अथवा लाभ का कार्य करने के लिए अक्षय तृतीया का दिन सबसे शुभ माना जाता है। इस दिन आप जो भी शुभ कार्य करते है, उनका अक्षय फल मिलता है। इसी कारण इस खास दिन को अक्षय तृतीया निस्वार्थ भाव से जरूरतमंदों को दान करने का महापर्व है। हिन्दू कलैण्डर में अक्षय तृतीया को सबसे पवित्र एवं बेहद शुभ दिन माना गया है। पुराणों के अनुसार अक्षय तृतीया पर दान, धर्म करने वाले व्यक्ति को वैकुंण्ठ धाम में जगह मिलती है। इसलिए इस दिन को दान का महापर्व भी माना जाता है। सबसे महत्वपूर्ण बात अक्षय तृतीया पर जिनका विवाह होता है, उनका सौभाग्य अखंण्ड रहता है। इस दिन लक्ष्मी अनुष्ठान पर उसमें शामिल होने मात्र से महापुण्य फलों की प्राप्ति होती है।

इनवेस्टमेंट के लिए क्यों शुभ?

    दर्शकों यहां पर आपको कुछ विशेष जानकारी देना चाहता हूँ, आप इस पर अवश्य ध्यान दे । इस दिन सूर्य, चन्द्रमा और बृहस्पति एकजुट होकर चलते है। जो हर तरह के कार्य के लिए शुभ मुहूर्त माना जाता है। यहीं वजह है कि लोग इस दिन को किसी नए सामान की खरीददारी और इन्वेस्टमेंट के लिए अच्छा मानते है। खरीदारी के साथ ही किसी चीज का दान करना भी इस दिन पुण्य बटोरने एवं समृद्धि लाने का प्रतीक माना जाता है। इसे आखा तीज भी कहते है। इस दिन घर में हवन, पूजा और पितरों का श्राद्ध करना भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।

पौराणिक कथा अक्षय तृतीया की...

अक्षय तृतीया की अनेक व्रत कथाएँ प्रचलित है। संक्षिप्त रूप से आपको दो तीन कथाएँ बता रहा हूँ। प्राचीन काल में धर्मदास नामक वैश्य था। उसका सदाचार, देव और ब्राह्याणों के प्रति काफी श्रद्धा थी। एक दिन उसने अक्षय तृतीया व्रत के महात्मय को सुना, उसने इस पर्व के आने पर गंगा स्नान करके विधि पूर्वक देवी-देवताओं की पूजा की, व्रत किया, ब्राह्याणों को स्वर्ण, वस्त्र सहित अन्य वस्तुएं दान में दी। अनेक रोगों  से ग्रस्त एवं वृद्धि होने के बावजूद भी इसने उपवास करके धर्म, कर्म और दान पुण्य किया। यहीं वैश्य दूसरे जन्म में कुशावती का राजा बना। अक्षय तृतीया के दिन किए गए दान-पुण्य के कारण, वह बहुत धनी प्रतापी राजा बना। त्रिदेव तक उसके दरबार में  अक्षय तृतीया के दिन ब्राह्यण का भेष धारण करके महायज्ञ में शामिल होते थे। अपनी श्रद्धा और भक्ति का उसे कभी घमण्ड नहीं हुआ। माना जाता है कि यही राजा आगे चल कर राजा चन्द्रगुप्त के रूप में पैदा हुआ।

विष्णु धर्मसूत्र, मत्स्यपुराण, नारदीय पुराण, भविष्यादि पुराणों में इसका विस्तृत उल्लेख है तथा इस व्रत की कई कथाएं भी हैं। सनातन धर्मी गृहस्थजन इसे बड़े उत्साह से मनाते हैं। अक्षय तृतीया को दिये गये दान तथा किये गये स्नान, जप, तप, हवन आदि कर्मों का शुभ तथा अनन्त फल मिलता है। यदि यह तृतीया कृत्तिका नक्षत्र से युक्त हो तो विशेष फलदायिनी होती है। इसी तिथि को नर-नारायण, परशुराम तथा हयग्रीव अवतार हुए थे, इसलिये इस दिन उनकी भी जयन्ती मनाई जाती है। इसमें जल से भरे कलश, पंखे, चरण पादुकाएं (खड़ाऊँ), पादत्राण (जूता), छाता, गौ, भूमि, स्वर्णपात्र आदि का दान पुण्यकारी माना गया है। इस दान के पीछे यह लोक विश्वास है कि इस दिन जिन-जिन वस्तुओं का दान किया जायेगा वे समस्त वस्तुएं स्वर्ग में गरमी की ऋतु में प्राप्त होंगी। इस व्रत में घड़ा, कुल्हड़, सकोरा आदि रखकर पूजा की जाती है।

बुन्देलखण्ड में यह व्रत अक्षय तृतीया से प्रारम्भ होकर पूर्णिमा तक बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। कुमारी कन्याएं अपने भाई, पिता, बाबा तथा गांव-घर के, कुटुम्ब के लोगों का शगुन बांटती है तथा गीत गाती हैं, जिसमें एक दिन पीहर न जा पाने की कचोट व्यक्त होती है। अक्षय तृतीया को राजस्थान में वर्षा के लिये शकुन निकाला जाता है, वर्षा की कामना की जाती है तथा लड़कियां झुण्ड बनाकर घर-घर जाकर शकुन गीत गाती हैं। लड़के पतंग उड़ाते हैं। ‘सतनजा’ (सात अन्न) से पूजा की जाती है। मालवा में नये घड़े के ऊपर खरबूजा तथा आमपत्र की पूजा होती है। किसानों के लिये यह नववर्ष के प्रारंभ के दिन माना जाता है। इस दिन कृषि कार्य का प्रारम्भ समृद्धि देगा- ऐसा विश्वास किया जाता है। इस दिन बदरिकाश्रम में भगवान् बद्रीनाथ के पट खुलते हैं। इस तिथि को श्रीबद्रीनाथ की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है तथा लक्ष्मीनारायण के दर्शन किये जाते हैं। इस तिथि को गंगा स्नान को अति पुण्यकारी माना गया है।

एक बार फिर याद दिला दूं इस वर्ष 2018 में कृतिका नक्षत्र के सौभाग्य, आयुष्मान योग तथा मंगलवार 17 मार्च की मध्यरात्रि के उत्तरार्ध 25.55 से गुरूवार 19 मार्च को सूर्योदय तक रहते ‘सर्वार्थ सिद्धि योग’ में अक्षय तृतीया (अभिजीत स्वयं सिद्ध मुहूर्त) यानी आखातीज पर्व के साथ चिरंजीवी महात्माओं में एक ब्राह्मण शिरोमणि श्री परशुराम की जन्म जयंती भी मनाई जाएगी। इसी तृतीया को शिव प्रिया-अर्धांगिनी देवी पार्वती की पूजा, मिट्टी के कलश-घड़े में जल, फल, पुष्प, गंध, तिल, अन्न के साथ दान करने का विधान भी है। इससे मनोकामना की पूर्ति होना सम्भव है। इसके लिए प्रार्थना में कहा भी है-

‘एष धर्मघटो दो ब्रह्मविष्णु शिवात्मकः।
अस्य प्रदानात्सकला मम सन्तु मनोरथाः।।


परशुराम जंयतीः- स्कन्द एवं भविष्य पुराण में उल्लेख कि अक्षय तृतीया पर रेणुका के गर्भ से भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में जन्म लिया था। कोंकण और चिप्लून के परशुराम मंदिर में इस दिन परशुराम जंयती बड़ी धूम धाम से मनाई जाती है। दक्षिण भारत में परशुराम जंयती को विशेष महत्व दिया जाता है। इस दिन परशुराम जी की पूजा करके उन्हें अध्र्य देने का बड़ा महापर्व माना गया है।
    
जैन धर्म में अक्षय तृतीयाः- जैन धर्मावलम्बियों का महान् धार्मिक पर्व अक्षय तृतीया है। इस दिन जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभ देव भगवान ने एक वर्ष की तपस्या पूर्ण करने के पश्चात इक्षु (सोरड़ी गन्ने) रस से परामण किया था। इस कारण यह दिन इक्षु तृतीया एवं अक्षय तृतीया के नाम से विख्यात हो गया।

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