अनिद्रा, मानसिक तनाव या रक्तचाप के शिकार हैं? ...बदलिये अपने सोने की दिशा || Suresh Shrimali
अनिद्रा, मानसिक तनाव या रक्तचाप के शिकार हैं?
वेदों में इस बात का ध्यान रखने के निर्देश दिए हुए है कि सोते वक्त व्यक्ति की स्थिति उचित हो। यदि इन सब बातों को हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देखें तो भी यही सही साबित होगी। क्योंकि पृथ्वी के उत्तरीय ध्रुव से दक्षिणीय धु्रव तक प्रभावकारी चुंबकीय धाराएं लगातार बहती रहती है।
आधुनिक जीवनशैली के चलते कई बार हम अपने घर और खासकर शयनकक्ष इस प्रकार बना लेते हैं कि वह अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त तो नजर आता है लेकिन उसमें सोने पर हम अनिंद्रा, मानसिक तनाव या फिर रक्तचाप के शिकार बन जाते हैं? ऐसा क्यों होता है, आइये, जानते हैं।
भारतीय शास्त्रों में उत्तर दिशा को कुबेर और धन संबंधित दिशा माना गया है। इसके विपरीत दक्षिण दिशा को यम का स्थान या हानि की दिशा माना गया है। इसीलिए शयनकक्ष का निर्माण करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि सोते समय व्यक्ति के पैर उत्तर दिशा की ओर तथा सिरहाना दक्षिण दिशा की ओर रहे ताकि व्यक्ति के पैर धन प्राप्ति की ओर जाता हुआ प्रतीत हो। इसके विपरीत स्थिति में यदि व्यक्ति के पैर दक्षिण दिशा की ओर तथा सिरहाना उत्तर दिशा की ओर रहेगा तो वह मृत्यु स्थान की ओर जाता हुआ प्रतीत होगा।
यही कारण है कि भारतीय वैदिक साहित्य में स्पष्ट रूप से इस बात का ध्यान रखने के निर्देश दिए हुए है कि सोते वक्त व्यक्ति की स्थिति सही साबित होगी। क्योंकि पृथ्वी के उत्तरीय धु्रव से दक्षिणीय धु्रव की चुम्बकीय धाराएं लगातार बहती रहती है। इन धाराओं की प्रकृति चुम्बक की तरह होती है। यह अपने सम्पर्क में आने वाली सभी वस्तुओं को प्रभावित करती है। यही कारण है कि जब व्यक्ति उत्तर की ओर सिरहाना तथा दक्षिण की ओर पैर करके सोता है तो उसे इन धाराओं के द्वारा अपनी संचित ऊर्जा विपरीत स्थिति यदि व्यक्ति उत्तर की ओर पैर तथा दक्षिण की ओर सिरहाना करके सोता है तो यही किरणें उसके हाथों और पैरों के नाखूनों से होती हुई उसके कपाल में ऊर्जा के रूप में केन्द्रित हो जाती है।
यही कारण है कि जब व्यक्ति इस उचित स्थिति में शयन करता है तो अगले दिन जागने पर तरोताजा, प्रफुल्लित, प्रसन्न एवं ऊर्जामय महसूस करता है। वैदिक सहित्य में दक्षिण को बुरा माना गया है। यही कारण है कि मृत व्यक्ति के शरीर को दक्षिण की ओर पैर करके रखा जाता है। आधुनिक साहित्य में भी इस संतुलन का ध्यान रखा जाना अतिआवश्यक है। आधुनिक जीवनशैली के चलते कई बार मनुष्य इन सब बातों का ध्यान नहीं रख पाता है। इसके चलते ही अनिन्द्रा, मानसिक तनाव, उच्च और निम्न रक्तचाप जैसी जीवनशैली से जुड़ी बीमारियां आजकल आम हो गई है। यह समय की आवश्यकता है कि हम अपने घर या भवन की सुन्दरता के साथ ही वास्तु संतुलन का भी विशेष ध्यान रखें।
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