Navratra-2018 || रजस्वला नारी और नवरात्रा पूजा | Suresh Shrimali
रजस्वला नारी और नवरात्रा पूजा
अनेक दर्शकों, खासकर महिला दर्शकों ने पूछा है कि क्या रजस्वला होने की स्थिति में उन्हें नवरात्रा पूजा और व्रत नहीं करने चाहिए। ऐसा है कि भक्ति में भाव प्रधान है, भावनाओं का महत्व है। लेकिन साथ ही तन की शुद्धता का भी अपना महत्व है। तन शुद्ध हो इसीलिए हम सुबह उठते ही पूजा घर में जाकर पूजा करने नहीं बैठ जाते। नित्य कर्मों से निवृत होकर स्नान आदि कर शुद्ध वस्त्र धारण कर पूजा घर में प्रवेश करते हैं। क्योंकि तन की शुद्धता आवश्यक है। वैसे तो मानव तन है ही अशुद्ध। पुरूष हो या नारी। तन हमेशा अशुद्ध ही रहता है। क्योंकि आप जो भी खाते हैं उसी खाने के रस से ही हमारे शरीर में रक्त भी बनता है तो उसी रस से मल, मूत्र व कफ आदि भी बनते हैं। रक्त के प्रवाह से जीवन चलता है और मल, मूत्र आदि हमारा तन बाहर कर देता है। लेकिन खाने के साथ ही तो यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती। इसमें समय लगता है। जब तक आपके तन में गये भोजन से रस बनेगा, फिर रक्त, फिर मल-मूत्र आदि तब तक आप अशुद्ध ही तो हैं। और यह प्रक्रिया निरंतर 24 घंटे चलती है। ऐसा नारी व पुरूष दोनों के साथ होता है लेकिन नारी के तन में कुछ विशिष्टता हैै। रक्त, मल-मूत्र वहां भी बनते हैं लेकिन नारी शरीर का आवर्त जो रक्त का ही एक रूप होता है वह एक मास तक नारी के योनी मार्ग पर एकत्र होता रहता है। और काला पड जाता हे। एक माह बाद यह रक्त बाहर निकल जाता है। इस रक्त के साथ ही विषैले किटाणु भी नारी शरीर से बाहर निकलते हैं। यह क्रम तीन से चार दिन चलता है और इस अवधि में नारी की धमनियां अशुद्ध रक्त को शरीर से बाहर करने का काम करती है। चूंकि इसके साथ विषैले किटाणु बाहर आते हैं अतः इस अवधि में नारी को चार दिन रसोई व पांच दिन मंदिर से दूर रहना होता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। जिस नारी को पता है कि वह नवरात्रा यानी नो दिन की अवधि में रजस्वला हो सकती है। वह नवरात्रा पूजा नहीं करती हैं लेकिन यदि किसी महिला ने नवरात्रा पूजा की व्रत रखा और बीच में अचानक समय पूर्व ही रजस्वला हो गई तो! ऐसे में उचित होगा कि नारी व्रत तो पूरे करें लेकिन मंदिर अथवा देवी की प्रतिमा को स्पर्श न करें। क्योंकि देवी मां तो मन की शुद्धता देखती हैं, तन तो वेसे भी नर हो या नारी कभी पवित्र होता ही नहीं। हां, परपंराएं हैं, इन्हें मानें लेकिन यह न मान लें कि रजस्वला होने से कोई अधर्म हो गया या यह कोई
पाप है। यह तो शारीरिक लक्षण हैं और इनका अपना महत्व भी है। अगर आप नौ दिनों के बीच रजस्वला हो जाएं तो व्रत पूरे करें एवं मंदिर में न जाकर मन ही मन श्रद्धा के साथ माॅं का स्मरण अवश्य करें।
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