बसंत पंचमी || 22 जनवरी 2018 || Suresh Shrimali



बसंत पंचमी  
22 जनवरी 2018





आपने ध्यान दिया हो तो हमारी जो ह्युमन बाॅडी है उसमें दो इम्पोर्टेंट चीजें है, एक है शरीर, जिसको भोजन की आवश्यकता होती है। उस भोजन में आप विटामिन, मिनरल्स, कार्बोहाइड्रेड, ये सब चीजें होने से हमारी बाॅडी परफेक्ट काम करती और इससे हमें एनर्जी मिलती है और बाॅडी की रेजिस्टेंस पावर यानि रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। लेकिन वो लोग जो ज्ञानी है या ज्ञानी बनना चाहते है, वो लोग जो म्युजिशियन है, वो लोग जो साहित्यकार है, कवि है, फिल्म-टेलीविजन इंडस्ट्री, प्रिंट एवं इलेक्ट्राॅनिक मीडिया में काम करते है, उन लोगों को अपने मन को कंट्रोल रखना बहुत जरूरी होता है। लेकिन आजकल हम लोगों को देखते हैं के मन एकाग्रचित्त नहीं हैं। भटकता हैं तो मन के लिए हम क्या करें तो बाॅडी के लिए हम रेजिस्टेन्स पाॅवर के लिए और इम्युनिटि के लिए काम करते है। लेकिन मन की भी एक इम्युनिटि होती है मन की भी एक रेजिस्टेन्स पाॅवर होती है। तो मन का भोजन क्या हुआ, वो होता है ज्ञान लेकिन ये ज्ञान हमें अखबार पढ़ने से सोशियल मीडिया से टेलीविजन पर देखने से बुक्स पढ़ने से आता हैं। या उसके लिए माँ सरस्वती का आशीर्वाद और वरदान मिलना भी जरूरी है।

बसंत पंचमी की छोटी-छोटी साधनाएं कीजिए। अब वो सबकुछ पा सकेंगे जो आप पाना चाहते हैं। 22 जनवरी को माँ सरस्वती की आराधना करके आप अपने मन की इम्युनिटि और मन के रेजिस्टेंस पाॅवर को बढ़ा सकते हैं ज्ञान के द्वारा। क्योंकि मन के लिए ज्ञान का एक आहार बहुत जरूरी हैं।

हिन्दुस्तान में सात वार और नौ त्यौहार होते हैं, हर रोज दिन शुभ होता हैं। लेकिन साल में कुछ ऐसे ग्रहों और नक्षत्रों का काॅम्बिनेशन के दिन आते हैं। जिन दिनों में ईश्वर की आराधना छोटे पूजा-पाठ, व्रत, दान, विशेष विधि से हम हमारी इच्छाओं मनोकामनाओं अभिलाषाओं को पूरा कर सकते हैं।


सरस्वती का महत्व

मनुष्य को संयमित जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा-मस्तिष्क से प्राप्त होती हैं। मस्तिष्क को यह शक्ति-ज्ञान से प्राप्त होती हैं। ज्ञान के लिए-बुद्धि का होना आवश्यक हैं और बुद्धि की दात्री माता सरस्वती हैं। 

सांसारिक जीवन के किसी भी क्षेत्र जैसे- धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष में सफलता प्राप्त करने के लिए मनुष्य में ज्ञान का होना आवश्यक है। ज्ञान, विवेक, प्रतिभा, स्मरण शक्ति, वाक् शक्ति, चिंतन और निर्णय शक्ति प्राप्त करने के लिए एकमात्र यही सरल उपाय है कि सरस्वती देवी की उपासना की जाए। यह बात अलग है कि कोई ज्ञानार्जन करके कवि बनना चाहता है, कोई सिंगर, कोई राईटर या फिर सिविल सर्विसेज में जाना चाहता है परन्तु ये सभी क्षेत्र सरस्वती जी के द्वारा ही अनुशासित होते हैं। इसलिए उनका आषीर्वाद हर क्षेत्र में परम आवष्यक हैं। 

बसंत पंचमी, ज्ञान, संगीत और कला की देवी, ‘सरस्वती’ की पूजा का त्यौहार है। इस त्यौहार में बच्चों को हिंदू रीति के अनुसार उनका पहला शब्द लिखना सिखाया जाता है। इस दिन पीले वस्त्र धारण करने का रिवाज है। 

बसंत ऋतु का प्रारंभ भी इस दिन से ही होता है। इसे ‘श्रीपंचमी’ के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन नवीन ऋतु के आगमन का सूचक भी है। इसीलिए इसे ऋतुराज बसंत के आगमन का प्रथम दिन माना जाता है।

बसंत पंचमी का त्यौहार विद्या की देवी सरस्वती माता को प्रसन्न कर शिक्षा क्षेत्र में पूर्ण सफलता एवं आशीर्वाद प्राप्ति के लिए मनाया जाता है। जीवन में शिक्षा अतिआवश्यक है। बिना शिक्षा और ज्ञान के जीवन एक अंधकार समान है और यह अंधकार आगे चलकर अभिशाप बन जाता है। 


जीवन में कुछ हासिल करना है तो तरीके बदलो इरादें नहीं।

आज का यह टाइम टेक्नाॅलोजी और सांईटिफक टेक्निक्स का युग है। इसमें एज्युकेषन के साथ-साथ नई टेक्नोलाॅजी की नाॅलेज होना जरूरी है। नहीं तो प्रगति और उन्नति की इस दौड़ में व्यक्ति पीछे छूट जाता है। एक जमाना था जब हमारे घर की बहन-बेटियों को अधिक से अधिक दसवीं-ग्यारहवीं कक्षा तक ही पढ़ाया जाता था। उसके बाद उनका विवाह कर दिया जाता था। लेकिन आज इस 21वीं सदी में सभी माता-पिता अपने पुत्रों के समान ही अपनी पुत्रियों को भी उच्च शिक्षा इसलिए दे रहे है ताकि वो इस युग में सफलता से जीवन यापन कर पाए। 

आज के समय में शायद ही कोई ऐसे माता-पिता होंगे जो अपनी संतान को शिक्षित नहीं करना चाहते है, हर माता-पिता अपनी-अपनी क्षमतानुसार संतान के लिए उन सभी विकल्पों को स्वीकार करने को तैयार रहते हैं जो उनका करियर बना सकें। वे भावी दाम्पत्य जीवन, परिवार के दायित्वों को वहन करने में सक्षम हो पाए। 

जन्म लेने के साथ ही बच्चे की यह भाग-दौड़ प्रारंभ हो जाती है। जब तक वह नासमझ अथवा दूध पीता बच्चा है, तब तक तो वह केवल लाड-दुलार और ममत्व के आंचल में रहता है लेकिन जैसे ही वह चलना सीख जाता है, उसकी दौड़ शुरू हो जाती है। आजकल तो माता-पिता बच्चों को जन्म के पूर्व से ही, जब वह गर्भस्थ होता है, तो इस चिंतन में लग जाते है कि किस स्कूल में स्कूल में उसका प्रवेश करवाया जाएगा? जैसे ही वह 3-4 साल की उम्र में चलना सीखता है। उसकी चलने की यात्रा प्रारंभ हो जाती है। शिक्षा प्राप्ति के लिए उसके कदम स्कूल की ओर चल पड़ते हैं। अभी वह चलना ही सीखा है, उसे न तो उसके लक्ष्य का पता है, ना ही मंजिल का। माता-पिता की इच्छा और शिक्षक की सहुलियत के अनुसार उसका भविष्य तय कर दिया जाता है। 

प्रत्येक माता-पिता चाहते हैं कि उसका बच्चा सदा पढ़ाई में अव्वल रहे, कक्षा में उसे सदा पहला स्थान मिले। स्कूली शिक्षा तक बच्चे को हर विषय में अव्वल रहने की हिदायत मिलती रहती है। अव्वल न रहे तो डांट-फटकार, प्रताड़ना और दण्ड पाता है। माता-पिता ही उसे हीन होने का आभास कराते हैं कहते हैैं- देखों, तुम कहाँ और तुम्हारे साथी कहाँ! उसमें सबसे आगे रहने की प्रतिस्पर्धा भावना भरी जाती है। प्रतिस्पर्धा में कहीं पिछड़ न जाएं इसके लिए स्कूल के साथ ही उसे ट्यूशन भी करा दिया जाता है। जब बच्चा स्कूली शिक्षा पूरी करता है तो न तो माता-पिता उससे पूछते हैं कि तुम किस विषय में महारत हासिल करना चाहते हो या कौनसा विषय तुम्हें प्रिय है, पसंद आता है। 

यदि माता-पिता की यह इच्छा है कि उनका बच्चा इंजीनियर, डाॅक्टर, शिक्षक, वैज्ञानिक या फिर बिजनसमैन बने तो वे अपनी ही इच्छा से उससे संबंधित विषय दिलाकर आगे चलने को प्रेरित करते हैं। स्कूली शिक्षा से ही प्रथम आने की होड में जुट रहा बच्चा यहां भी यही प्रयास करता हैं कि वह सबसे आगे रहे। सबसे तेज दौड़ लगाकर प्रथम आए। अब तक माता-पिता ने उसे काॅम्पिटिशन में फस्र्ट आने के लिए मोटिवेट किया तो अब बच्चा स्वयं अपने साथियों से श्रेष्ठ होने की होड़ में जुट जाता है। वह भी चाहता है कि वह इतना तेज दौड़े कि बाकी सब उससे पीछे छूट जाएं। आजकल के स्टूडेंट्स को आई.आई.टी. या इंजीनियरिंग अथवा कम्प्यूटर आदि की डिग्री मिलने के पहले ही नौकरी मिल जाती है। काॅलेज या शिक्षण संस्थान की ओर से नेषनल और इन्टरनेषनल कम्पनीज के प्रतिनिधियों को अपने यहां आमंत्रित कर बताया जाता है कि यह बच्चे सदा अव्वल रहे है और अब वे अपनी डिग्री लेकर रिस्पेक्टिव फील्ड में क्रिएशन के लिए केपेबल है। तो कम्पनियां उन्हें डिग्री मिलने से पहले ही अनुबंधित कर अपने यहां बड़े वेतन पर नौकरी पर रख लेती हैं। यहां से बच्चे की नई यात्रा की दौड़ प्रारंभ होती है। दिशा बदल जाती है, पर दौड़ जारी रहती है। 

अब उसे अधिक से अधिक धन कमाने, नाम कमाने की धुन सवार हो जाती है और वह उसी दिशा में चलता जाता है, तेज कदमों के साथ, दौड़ते हुए। लेकिन जाना कहां है, मंजिल क्या है, यह नहीं मालूम। क्या वो संतुष्ट हैं अपनी इस यात्रा से? यह पूछने पर कहेगा-नहीं, अभी और कमाना है, धन भी, प्रतिष्ठा भी। लेकिन क्या आपके जीवन का यही उद्देश्य था? क्या आपके जन्म के पीछे परमात्मा का यही लक्ष्य रहा? 

बच्चा 5 साल का यो 15 साल का पेरेंट्स उसे स्कूल, टयूषन के साथ एक्सट्रा एक्टिविटिज करने का दबाव बनाते रहते है। जिसमें बच्चों का बचपन कहीं खो सा जाता है। 

मेरी आप सभी पेरेंट्स को यही सलाह है कि प्लीज बच्चों को अपना बचपन खुलकर जीने दे। उनके सपनों को नई उड़ान के लिए मोटिवेट करें।

किसी भी तरह का प्रेषर न बनाते हुए उनका फ्यूचर उन्हें स्वयं डिसाईड करने का चांस दें। किसी भी दूसरे बच्चे के साथ अपने बच्चों का कम्पेरिजन करना बंद कर दें क्योंकि हर बच्चा अपने आपमें स्पेषल होता है। उनके माता-पिता के साथ-साथ उनके अच्छे दोस्त और मैनटोर बनकर उन्हें गाइड करें और उनके कांफिडेंस रेज करने में उनकी मदद् करें। 

पढ़ाई के साथ-साथ स्पोट्र्स और मेडिटेषन की तरफ भी उनका ध्यान लगाए क्योंकि आजकल के बच्चों में मेन प्राॅब्लम डिप्रेषन की है, जिस कारण सुसाइड करना एक आम बात हो गई है। अगर एग्जाम में अच्छे नम्बर नहीं आए तो सुसाइड, अगर इन्टरव्यू में सलेक्षन नहीं हुआ तो सुसाइड और इसकी जड़ है डिप्रेषन, पर ये डिप्रेषन आता कहा से है क्या आपने कभी सोचा है? 

जब हम बच्चों पर लगातार प्रेषर क्रियेट करेंगे तो उसमें  डिप्रेषन आना स्वाभाविक ही है। इसलिए मेडिटेषन एक ऐसा रास्ता है जिससे हमें डिप्रेषन नाम की बीमारी को जड़ से दूर कर सकते है। 

सिर्फ जरूरत है तो -

असफलता एक चुनौती है स्वीकार करो।

क्या कमी रह गई देखों और सुधार करो।

जब तक न सफल हो नींद चैन को त्यागों तुम

संघर्षों का मैदान छोड़ मत भागो तुम।

कुछ किए बिना ही जग में जय जयकार नहीं होती।

कोषिष करने वालों की कभी हार नहीं होती।

इसलिए खुद पर भरोसा रखें क्योंकि -

Believing in yourself is the first secret to success.

क्यों डरे कि जिन्दगी में क्या होगा, हर वक्त क्यों सोचें कि बुरा होगा, बढ़ते रहे मंजिलों की ओर, हमें कुछ न भी मिला तो क्या? तर्जुबा तो नया होगा। क्योंकि सफलता हमारा परिचय दुनिया से करवाती है और असफलता हमें दुनिया का परिचय करवाती है।

आइये अब जानते है कि आज के इस दौर में बच्चों को जो प्राॅब्लम्स आ रही है-

    1-       Lack of concentration
2-       Lack of confidence
3-       Lack of Skill Power
4-       Examination fever

इसके लिए मैं बच्चों से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर छोटे-छोटे प्रयोग बताने जा रहा हूं। उनकी मेहनत के साथ जब इन प्रयोगों का गठजोड़ होगा तो परिणाम सोने पर सुहागा से होंगे। साथ ही बच्चों और पेरेंट्स के जो कनसन्र्स है उनकी रेमेडीज भी बताने जा रहा हूं। 

ऐसे बढ़ाएं काॅन्फिडेंस:-


आपका बच्चा बाकी सब बातों में शार्प माईन्ड है। बातें बड़ी-बड़ी करता हैं। लेकिन पढ़ाई में पिछड़ा रहता हैं या भागता हैं। उसका जी पढ़ने में नहीं लगता। यदि आप भी इस परेषानी से दो चार हो रहे है तो आपको यह प्रयोग सफलता देगा। 

यदि आपका बच्चा 10-12 वर्ष का हैं तो आप स्वयं यह प्रयोग करें और यदि बच्चा इससे बड़ा हैं तो उसे स्वयं यह जाप करना चाहिए। 

आप बसंत पंचमी के दिन प्रातः पूजा स्थान पर अभिमंत्रित सरस्वती यंत्र रखकर, धूप-दीप करे और इस मंत्र की 11 माला का जाप करें। 

मंत्र:-
ऊँ हृीं हृीं हृीं सरस्वत्यै नमः।।

मंत्र जाप पूर्ण होने के पश्चात् यंत्र को पूजा स्थान में अथवा बच्चे की पढ़ाई के स्थान पर स्थापित कर दें तथा नित्य धूप-अगरबती करें। बसंत पंचमी के पष्चात 11 गुरूवार तक यह क्रिया दोहराएं।

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