Ganesh Chaturthi 2018 | आखिर क्यों शिव ने काटा अपने ही पुत्र श्री गणेश का सिर | Suresh Shrimali

आखिर क्यों शिव ने काटा अपने ही पुत्र 
श्री गणेश का सिर


दर्शकों, गणेश चतुर्थी पर राशि अनुसार पूजा और अष्टसिद्धि दायक गणपति साधना बहुत महत्वपूर्ण है, इनकी बात करें उससे पहले गणपति के सिर कटने के पीछे छिपे आध्यात्मिक रहस्य के बारे में बात करते हैं। देवाधिदेव महादेव ने अपने ही पुत्र श्री गणेश का सिर क्यों काटा? क्या इसके पीछे कोई रहस्य है? देवाधिदेव महादेव तो आदी है अनंत हैं। जब सृष्टि में कुछ भी नहीं था केवल शून्य था तब भी शिव थे और जब कुछ नहीं रहेगा तब भी शिव ही रहेंगे। ऐसा सभी कहते हैं और मानते आए हैं। शिव सर्वशक्तिमान हैं। उन्होंने ही पहले विष्णु और फिर ब्रह्मा को उत्पन्न किया और फिर इन्हें सृष्टि की रचना और पालन करने का दायित्व सौंपा। वे जगत के पिता हैं और माता पार्वती जगत जननी हैं। फिर यह कैसे मान लें कि जिस गणेश को माता पार्वती ने अपने मैल से बनाकर द्वार पर बिठा कर पहरेदारी करने को कहा उसे शिव पहचान ही न पाएं। एक बच्चे की बातों और जवाबों से वे इतने क्रोधित हो गए कि बालक का सिर ही धड़ से अलग कर दिया और वो भी उस बालक का जो कि उनकी अद्र्धांगिनी पार्वती ने अपने ही मैल से बनाया था और अपनी रक्षा के लिए उसे पहरेदारी पर बिठा दिया था। क्या पूरे जगत की पल-पल की खबर रखने वाले, हर किसी के मन की बात जान लेने वाले देवाधिदेव महादेव इतनी बड़ी भूल कर सकते हैं कि अपने ही पुत्र का क्रोध में आकर सिर काट दें। ऐसा शास्त्रों में उल्लेख है और सभी मानते हैं। मानते तो सभी है लेकिन अधिकांश मन में संदेह भी करते हैं कि ऐसी भूल देवाधिदेव महादेव कैसे कर सकते हैं? क्या संपूर्ण सृष्टि की खबर रखने वाले महादेव अपनी पत्नी के कृत्यों से ही अनभिज्ञ हो सकते हैं? क्या वे अपनी शक्तियों से पहचान नहीं पाए कि जो बालक उनको भीतर प्रवेश करने से रोकने का साहस बल्कि दुस्साहस कर रहा है वो आखिर है कौन? या क्रोध, आवेश में वे जगत पिता होकर अपने ही पुत्र का वध करने जा रहे हैं? कथा तो यही कहती है और हुआ भी ऐसा ही है लेकिन इस घटनाक्रम के पीछे जो रहस्य छिपा है वो कोई नहीं जानता? और यह रहस्य ही बालक गणेश के सिर विच्छेदन के पीछे का कारण है। क्या है वो रहस्य? आईये जानते हैं।
दरअसल माता पार्वती ने एकांत और अकेलेपन से आहत होकर ही अपने मैल से एक बालक की रचना की और फिर उसमें प्राण प्रतिष्ठा करके उसे अपना पुत्र बता कर कहा कि वह यहां उनकी पहरेदारी करे किसी को भीतर न आने दें। बालक ने उनकी बात मान ली और पहरे पर डट गए। इधर कुछ समय बाद ही वहां देवाधिदेव महादेव आ गए। सृष्टि रचियिता को क्या यह पता नहीं था कि उनकी अद्र्धांगिनी पार्वती इस समय कहा और क्या कर रही है? निश्चित ही पता था और उन्हें यह भी पता था कि पार्वती ने अपने मैल से बालक उत्पन्न कर उसे अपना पुत्र बनाकर पहरे पर बिठा दिया है और इसी कारण वे वहां आए थे। यानि उनका वहां आना अचानक नहीं हुआ बल्कि वे जानबूझकर वहां आए थे। चूंकि पार्वती ने अपने मैल से बालक का शरीर बनाया था इस कारण मैल की नकारात्मकता भी उस बालक में निश्चित ही प्रवेश करती। फिर जिस समय पार्वती ने पुत्र को उत्पन्न किया उस समय वहां केवल पार्वती ही थी, शिव नहीं। शिव-पार्वती के मिलन बिना हुआ बच्चा क्या अवैध नहीं कहलाता? लोग कहते कि पार्वती ने बिना शिव के बच्चे को जन्म दिया है? यह विचार आने पर शिव वहां पहुंचे और जान बूझकर बालक को क्रोधित करने लगे। और जब विवाद बढा तो उन्होंने बालक का सिर धड से अलग कर दिया। इसका पता पार्वती को चला तो वो उदास हो गई और बालक को पुनः जीवित करने की जिद करने लगी। तब शिव ने अपने गणों से कहा कि जो सबसे पहला जीव मिले उसका सिर लेकर आएं वह उस बालक को पुनः जीवित कर देंगे। तब गण एक हाथी का सिर लेकर आए और उसे बालक के सिर पर लगा उसे पुनः जीवित किया। इससे बालक का धड तो माता पार्वती का बनाया हुआ रहा और सिर पिता शिव ने लगाकर बालक की उत्पत्ति में अपना सहयोग भी कर दिया अतः वह दोनों की संतान हुई। फिर धड से सिर जोडने व उसे पुनः पंचतत्वों से पूर्ण कर जीवित करने की प्रक्रिया हुई तो मैल से बनने की जो नकारात्मकता उनमें रहती वो भी समाप्त हो गई। इसी कारण देवाधिदेव ने यह कार्य जान बूझकर किया न कि अचानक गुस्से या आवेश में आकर। सोच-समझ कर और देवों व सृष्टि में यह संदेश देने के लिए कि बालक गणेश शिव-पार्वती दोनों का पुत्र है ना कि पार्वती के मैल से बना पार्वती पुत्र। और गणेशजी के सिर विच्छेदन की इस घटना के कारण ही गणेश उत्सव गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक मनाने व फिर प्रतिमा विसर्जन की परंपरा बनी जो आज भी कायम है। इस उत्सव की परंपरा के पीछे ही सिर विच्छेदन व पुनः सिर जुडने का पूरा घटनाक्रम जुडा है। 

Comments