Shradh Paksha-2018 || न किया श्राद्ध तो परेशानी और संकट आ सकता है || Suresh Shrimali
न किया श्राद्ध
...तो परेशानी
...तो परेशानी
पितृ दोष कैसे बनता है और पितृ दोष होने से क्या क्या तकलीफें आती हैं इसका उत्तर में अलग से एक विडीयों में विस्तार से समझा चुका हूं। अगर आपको लगता है कि आप पितृ दोष के लक्षणों के होने से पीडित हैं तो समझ लीजिए की आपके पितृ आपसे नाराज हैं। अपने पितृ गणों के निमित्त श्राद्ध नहीं करने, उनकी अवहेलना करने पर असंतुष्ट पितृ गण अपने वंशजों को श्राप दे देते हैं, तब संबंधित परिवार संकटों से घिर जाता है। यही पितृ दोष कहलाता है। ब्रह्मपुराण में कहा गया है कि अगर किसी मृत व्यक्ति का श्राद्ध नहीं किया जाए तो परिवार को अभिशप्त, कष्ट झेलना पड़ता है, साथ ही वंश तक भी आगे नहीं बढ़ता।
यहां तक कि परिवार में असामयिक मृत्यु भी हो सकती है। अगर ऐसा हो रहा है तो निश्चित मानिये कि आप पितृ-दोष से ग्रसित हैं। जहां पितृेश्वरों के श्राद्ध नहीं किए जाते, उन कुलों में न तो शूरवीर, यशस्वी लोग उत्पन्न होते हैं और न वहां आरोग्य रहता है, न सौ वर्ष की किसी को आयु मिलती है, न वे लोग कोई उत्तम कार्य कर पाते हैं। उनका जीवन रोग, शोक, कायरता, चिंता, परितोष तथा अकाल मृत्यु से ही ग्रस्त रहता है। इसीलिए अपने कुल की वृद्धि के लिए व्यक्ति को पितृ श्राद्ध श्रद्धापूर्वक अवश्य ही करना चाहिए।
पितृ दोष- एक ऐसा दोष है जो कष्ट देता है, जीवन के पथ में बाधाएं खड़ी कर देता है, परेशानियों के कारण सिर ऊंचा नहीं हो पाता। उद्योग तथा व्यवसाय मे कोड़ी का भी लाभ नहीं होता, उल्टे लाखों के घाटे की चपत लगने लगती है। परिवार में कभी किसी को रोग, कभी घटना-दुर्घटना, कभी किसी की अकाल मृत्यु, पर इन सबके लिए दोषी-जवाबदेह तो आप ही हैं। क्योंकि आपने अपने पितृों को भुला दिया, उनका श्राद्ध तक नहीं कर पाए। उनके प्रति बे-परवाह-लापरवाह हो गए। इनके निमित्त स्नान, दान, तर्पण तक करना उचित नहीं समझा। आपके अपने ही परिवार में मृतक व्यक्ति, दादा, दादी अथवा कोई अन्य पूर्वज की आत्मा की किसी कारणवश मोक्ष गति नहीं हो पाती तब वे असंतुष्ट, अतृप्त स्थिति में अपने ही घर में इनविजीबल, अदृश्य रूप में रहते हैं। उसकी विशेष कामनाएं अपने परिवार से जुड़ी होती हैं। मोहवश अपने परिजनों से विच्छेद नहीं हो पाता। समय-समय पर वह घर में अपनी स्थिति का आभास भी दिलाती है। उसकी अदृश्य, पारदृष्टि परिवार के सभी कार्यक्रलापों पर रहती है। ऐसा नहीं समझियेगा कि कोई भी एकांत उनकी इस दृष्टि से छिपा हो सकता है। सतपथ ब्राह्मण में तो इतना तक स्पष्ट किया गया है कि सूक्ष्म, अदृश्य शरीर धारी होने से पितृ छिपे रहते हैं, इसी कारण वे जल, अग्नि, वायु प्रधान होते हैं। इसीलिए उन्हें यहां वहां, लोक-लोकांतरों में जाने-आने में कोई बाधा नहीं होती।
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