नवरात्रा घटस्थापना मुहूर्त, कलश स्थापना मुहूर्त और विधि || Suresh Shrimali





शरत्काले महापूजा क्रियते या च वार्षिकी।
तस्यां ममैतन्माहात्म्यं श्रुत्वा भक्तिसमन्वितः।।
सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वितः।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः।।

भगवती दुर्गा के ये शब्द साधक को जीवन में भक्ति एवं मुक्ति दोनों प्रदान करने का वचन दे रहे है। इसी श्लोक में चैत्र नवरात्रा एवं शारदीय नवरात्रा के रूप में विशेष जोर दिया गया है। नव का तात्पर्य नौ का अंक है और रात्रि अर्थात् अंधकार को मिटाकर अखण्ड ज्योति जलाकर जीवन के अंधकार का नाश करने का संकल्प है-नवरात्रा। बच्चा 9 माह में जन्म लेता है, ग्रह 9 है, विवाह में कुण्डली मिलान के लिए 36 गुण कुल होते है यानी टोटल 9 और कम से कम 18 मिलने चाहिए यानी टोटल 9, वहीं जिस माला से आप जाप करते हैं वह भी 108 मणिये की होती है यानी 9 और 9 पूर्णाक है जिसे 9 से गुणा या जोड सदैव 9 ही आती है। इसीलिए मां दुर्गा की आराधना सम्पूर्ण 9 दिन तक करनी चाहिए। 

नवरात्रा घटस्थापना मुहूर्त, 
कलश स्थापना मुहूर्त 
और 
विधि

सनातम धर्म के मुख्य पर्वाें में से एक नवरात्रा का पर्व है। चारों नवरात्रा हमारे चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के प्रतीक हैं।
नवरात्रा के नौ दिन जीवन में अज्ञान रूपी अन्धकार को पूर्ण रूप से नष्ट कर ज्ञान का प्रकाश आलोकिक करने के दिवस हैं, इसी प्रकार भय, निर्बलता को दूर कर स्वाभिमान और निर्भयता प्राप्त करके दरिद्रता को पूर्ण रूप से समाप्त कर लक्ष्मी को अपने जीवन में स्थापित करने का मुख्य दिवस हैं।
इस वर्ष 18 से 25 मार्च तक चैत्रीय नवरात्रा आ रहे हैं। सबसे पहले मैं आपको घट स्थापना का विषेष मुहूर्त बता देता हूं:- 18 मार्च को प्रातः काल 09 बजकर 48 मिनट से 11 बजकर 18 मिनट तक लाभ का चैघड़िया एवं 11 बजकर 18 से दोपहर 12 बजकर 48 मिनट तक अमृत का चैघड़िया, यह समय सर्वश्रेष्ठ रहेगा।
कलश को सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य, वैभव में वृद्धि और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। सनातन धर्म में ऐसी मान्यता है की कलश के मुख में स्वयं हरि-विष्णुजी निवास करते हैं, इसके कंठ में रुद्र एवं मूल में स्वयं ब्रह्मा जी विराजते है तथा कलश के मध्य में सभी दैवीय मातृशक्तियां निवास करती हैं।

कलश स्थापना विधि

सर्वप्रथम पूजा स्थल को अच्छी तरह स्वच्छ कर उसमें गंगाजल छिड़क कर शुद्ध कर ले उसके उसके बाद लाल रंग का एक कपड़ा बिछाएं। कपड़े पर थोड़ा अक्षत रख गणेश जी का स्मरण करें। उसके बाद मिट्टी के पात्र में जौ बोएं। पात्र के उपर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें। कलश के मुख पर रक्षा सूत्र बंधे और चारो तरफ कलश पर रोली से स्वास्तिक या ऊँ बनाएं। कलश के अंदर साबुत सुपारी, दूर्वा, फूल एवं सिक्का डालें। उसके ऊपर आम या अशोक के पत्ते रखे फिर श्रीफल लेकर उस पर लाल वस्त्र लपेट कर मोली बांध कर कलश पर रख दें। ध्यान रहे कि श्रीफल का मुख उस सिरे पर हो, जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है। शास्त्रों में उल्लेख है कि श्रीफल का मुख नीचे की तरफ रखने से शत्रु में वृद्धि होती है। श्रीफल का मुख ऊपर की तरफ रखने से रोग बढ़ते हैं, जबकि पूर्व की तरफ श्रीफल का मुख रखने से धन की क्षति होता है। इसलिए श्रीफल की स्थापना सदैव इस प्रकार करनी चाहिए कि उसका मुख साधक की तरफ रहे।
फिर समस्त देवी-देवताओं का आवाह्न करें की नौ दिनों के लिए वह इस में विराजमान हो, फिर दीप प्रज्जवलित करके कलश के सामने धूपबत्ती करें और माला, फल, नैवेद्य, इत्र इत्यादि समर्पित करें।


अगर कर रहे हैं अखण्ड ज्योति तो ध्यान से सुनें इन बातों को 

किसी भी पूजा-पाठ में सर्वप्रथम दीपक प्रज्ज्वलित करना अनिवार्य होता है. इसकी ज्योति स्वयं आद्या शक्ति का प्रतीकात्मक स्वरूप होती है. बिना इसके कोई भी पूजा पूर्ण नहीं हो सकती. इसके लिए गाय के शुद्ध देसी घी के प्रयोग को सर्वोत्तम माना गया है. इसी ज्योति से सुख-शांति और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है. जीवन की हर बाधाए स्वत ही दूर होने लगती है.
नवरात्रा पर किए गए उपाय शीघ्र फल प्रदान करते है। नवरात्रा में माँ को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धालु हर संभव प्रयास करते हैं क्योंकि ये नौ दिन माँ को अत्यंत प्रिय हैं। इन्हीं प्रयासों में एक है अखंड ज्योति प्रज्जवलित करना। इस दौरान अगर आप अखंड ज्योति को स्थापित करने का विचार कर रहे है तो आपको कुछ बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। नवरात्रा के प्रथम दिन माता की ज्योत जलाई जाती है लेकिन उससे पूर्व कुछ बातों का विशेष तौर पर ध्यान रखें, अन्यथा कहीं आप माँ के रूष्ट का कारण ना बन जाएं।
शास्त्रों के अनुसार अखंड ज्योति का संकल्प लेने से पहले आप जान लें कि यह खंडित नहीं होना चाहिए। ऐसा होना अशुभ माना जाता हैं। इससे आपको परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। 
ध्यान रखें कि नौ दिन जलने वाला यह अखंड ज्योति तेल या घी की कमी के कारण ना बुझे। इसके लिए किसी एक व्यक्ति को जिम्मेदारी दे। इसे बुझने से बचाने के लिए आप उसे कांच के गोले में रख सकते हैं। 
ईशान कोण अर्थात उत्तर पूर्व को देवताओं की दिशा मानी जाती है। इस दिशा में माता की प्रतिमा और अखंड ज्योति प्रज्वलित करना शुभ होता है। जो माता के सामने अखंड ज्योति प्रज्वलित करते हैं उन्हें इसे आग्नेय कोण (पूर्व-दक्षिण) में रखना चाहिए और पूजन के समय आपका मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए।



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