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कुंडली में कैंसर का कारण और उपाय || Yogas in Astrology || ज्योतिष में कैंसर के योग|| Suresh Shrimali
|| ज्योतिष में कैंसर के योग ||
कैंसर शब्द या रोग से आज हर कोई परिचित है। इसका नाम सुनते ही हाथ आंव फूल जाते हैं और मृत्यु सामने दिखने लगती है। केन्सर के ९०ः प्रतिशत मामलों में मृत्यु हो भी जाती है। ज्योतिष से कैंसर जैसे भयानक रोग की उत्पत्ति में कौन कौन से ग्रहों का प्रभाव रहता है इसे जाना जा सकता है। ज्योतिष सृष्टि संचरण की घड़ी है एवं व्यक्ति की जन्म कुंडली सोनोग्राफी है जिसके विश्लेषण से कैंसर की संभावना का पता लगाया जा सकता है। समय रहते प्रतिकूल ग्रहों को मंत्र जप एवं अन्य उपायों के द्वारा शांत कर इस रोग से बचा जा सकता है।
मानव शरीर में कैंसर की उत्पत्ति में कोशिकाओं की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। कोशिकाओं में श्वेत एवं लाल रक्त कण होते हैं। ज्योतिष में श्वेत रक्त कण का सूचक कर्क राशि का स्वामी चंद्र तथा लाल रक्त कण का सूचक मंगल है। कर्क राशि का अंग्रेजी नाम कैंसर है तथा इसका चिह्न केकड़ा है। केकड़े की प्रकृति होती है कि वह जिस स्थान को अपने पंजों से जकड़ लेता है, उसे अपने साथ लेकर ही छोड़ता है। इसी प्रकार कोशिकाएं मानव शरीर के जिस अंग को अपना स्थान बना लेती है उसे शरीर से अलग करके ही कोशिकाओं को हटाया जाता है। इसलिए ज्योतिष में कैंसर जैसे भयानक रोग के लिए कर्क राशि के स्वामी चंद्र का विशेष महत्व है। इसी प्रकार रक्त में लाल कण की कमी होने पर प्रतिरोधक क्षमता में कमी आ जाती है। ज्योतिष पूर्वजन्म के किये हुए कर्मों का आधार है अर्थात हम ज्योतिष द्वारा ज्ञात कर सकते हैं कि हमारे पूर्वजन्म के किये हुए कर्मों का परिणाम हमें इस जन्म में किस प्रकार प्राप्त होगा। ज्योतिर्विज्ञान के अनुसार कोई भी रोग पूर्व जन्मकृत कर्मों का ही फल होता है। ग्रह उन फलों के संकेतक हैं, ज्योतिष विज्ञान कैंसर सहित सभी रोगों की पहचान में सहायक होता है। पहचान के साथ-साथ यह भी मालूम किया जा सकता है कि कैंसर रोग किस अवस्था में होगा तथा उसके कारण मृत्यु आयेगी या नहीं, यह सभी ज्योतिष विधि द्वारा जाना जा सकता है।
जन्म कुंडली में जब एक भाव पर ही अधिकतर पाप ग्रहों का प्रभाव होता है, विशेषकर शनि, राहु व मंगल से तब उस संबंधित भाव वाले अंग में कैंसर रोग के होने की संभावना अधिक होती है. कैंसर रोग जिस दशा में होता है, उसके बाद आने वाली दशाओं का आंकलन किया जाना चाहिए. यदि यह दशाएँ शुभ ग्रहों की है या अनुकूल ग्रह की है या योगकारक ग्रह की दशा आती है तब रोग का पता आरंभ में ही चल जाता है और उपचार भी हो जाता है।
ज्योतिष में राहु को कैंसर का कारक माना गया है लेकिन शनि व मंगल भी यह रोग देते हैं।
जानिए जन्म कुंडली में कोनसे योग कैंसर कारक हो सकते हैं:-
1. राहु को विष माना गया है यदि राहु का किसी भाव या भावेश से संबंध हो एवं इसका लग्न या रोग भाव से भी सम्बन्ध हो तो शरीर में विष की मात्रा बढ़ जाती है।
2. षष्टेश लग्न, अष्टम या दशम भाव मे स्थित होकर राहु से दृष्ट हो तो कैंसर होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
3. बारहवें भाव में शनि-मंगल या शनि-राहु, शनि-केतु की युति हो तो जातक को कैंसर रोग देती है।
4. राहु की त्रिक भाव या त्रिकेश पर दृष्टि हो भी कैंसर रोग की संभावना बढ़ाती है।
5. षष्टम भाव तथा षष्ठेश पीडित या क्रूर ग्रह के नक्षत्र में स्थित हो।
6. बुध ग्रह त्वचा का कारक है अतरू बुध अगर क्रूर ग्रहों से पीडित हो तथा राहु से दृष्ट हो तो जातक को कैंसर रोग होता है।
7. बुध ग्रह की पीडित या हीनबली या क्रूर ग्रह के नक्षत्र में स्थिति भी कैंसर को जन्म देती है। बृहत पाराशरहोरा शास्त् के अनुसार षष्ठ पर क्रूर ग्रह का प्रभाव स्वास्थ्य के लिये हानिप्रद होता है।
यथा श्श्रोग स्थाने गते पापे , तदीशी पाप.....
अतरू जातक रोगी होगा और यदि षष्ठ भाव में राहु व शनि हो तो असाध्य रोग से पीडि़त हो सकता है।
8. सभी लग्नो में कर्क लग्न के जातकों को सबसे ज्यादा खतरा इस रोग का होता है।
9. कर्क लग्न में बृहस्पति कैसर का मुख्य कारक है, यदि बृहस्पति की युति मंगल और शनि के साथ छठे, आठवे, बारहवें या दूसरे भाव के स्वामियों के साथ हो जाये व्यक्ति की मृत्यु कैंसर के कारण होना लगभग तय है।
10. शनि या मंगल किसी भी कुंडली में यदि छठे या आठवे स्थान में राहू या केतु के साथ हों तो कैंसर होने की प्रबल सम्भावना होती है
11. छठे भाव का स्वामी लग्न, आठवे या दसवे में भाव में बैठा हो और पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो भी कैंसर की प्रबल सम्भावना होती है।
12. किसी जातक की कुंडली में सूर्य यदि छठे, आठवे या बढ़ावे भाव में पाप ग्रहों के साथ हो तो जातक को पेट या आंतों में अल्सर और कैंसर होने की प्रबल सम्भावना होती है।
13. किसी जातक की कुंडली में यदि सूर्य कही भी पाप ग्रहों के साथ हो और लग्नेश या लग्न भी पाप ग्रहों के प्रभाव में हो तो भी कैंसर की प्रबल सम्भावना रहती है।
14. कमजोर चंद्रमा पापग्रहों की राशी में छठे, आठवे या बारहवे हो और लग्न अथवा चंद्रमा, शनि और मंगल से दृष्ट हो तो अवश्य ही कैंसर होता है।
15. चंद्रमा व शनि छठे भाव में स्थिति है तब व्यक्ति को पचपन वर्ष की उम्र पार करने के बाद रक्त कैंसर हो सकता है।
16. आश्लेषा नक्षत्र, लग्न या छठे भाव से संबंधित होने पर और मंगल से पीड़ित होने पर कैंसर होने की संभावना बनती है।
17. शनि छठे भाव में राहु के नक्षत्र में स्थित हो और पीड़ित हो तब कैंसर रोग की संभावना बनती है।
18. शनि और मंगल की युति छठे भाव में आर्द्रा या स्वाति नक्षत्र में हो रही हो.तो कैंसर की संभावना बनती है।
19. मंगल और राहु छठे या आठवें भाव को पीड़ित कर रहे हों तब त्वचा का कैंसर हो सकता है।
20. छ्ठे भाव में मेष राशि हो या स्वाति या शतभिषा नक्षत्र पड़ रहा हो और शनि छठे भाव को पीड़ित कर रहा हो तब त्वचा कैंसर का रोग हो सकता है।
21. जन्म कुंडली में राहु या केतु लग्न में षष्ठेश के साथ हो तो पेट का कैंसर हो सकता है।
22. छठा भाव पीड़ित हो और राहु या केतु, आठवें या दसवें भाव में स्थित हो तो पेट का कैंसर हो सकता है।
23. यदि किसी जातिका की कुण्डली में लग्नेश अष्टम, षष्टम अथवा द्वाद्श में चला गया हो, लग्न स्थान पर क्रूर व पापी ग्रहों की स्थिति हो, चतुर्थ स्थान का अधिपति शत्रुगृही होकर पीड़ित हो, छठे भाव का अधिपति चतुर्थेश से संबंध बना रहा हो तो ऐसी स्थिति में जातिका को ब्रेस्ट कैंसर या स्तनों में बड़े विकार की संभावना प्रबल रूप से मौजूद होती है।
24. छठे भाव में कर्क अथवा मकर राशि का शनि स्तन कैंसर का संकेत देता है।
25. छठे भाव में कर्क या मकर का मंगल स्तन कैंसर का द्योतक है।
26. यदि छठे भाव का स्वामी पाप ग्रह हो और लग्नेश आठवें या दसवें घर में बैठा हो तो कैंसर रोग की आशंका रहती है।
27. छठे भाव में कर्क राशि में चंद्रमा हो, तब भी कैंसर का द्योतक है।
28. चंद्रमा से शनि का सप्तम होना कैंसर की संभावना को प्रबल बनाता है।
कैंसर से बचाव हेतु उपचार और उपाय:-
जन्म कुंडली में भावों के अनुसार शरीर से संबंधित ग्रहों के रत्नों का धारण करने से रोग-मुक्ति संभव होती है। लेकिन कभी-कभी जिसके द्वारा रोग उत्पन्न हुआ है, उसके शत्रु ग्र्रह का रत्न धारण करना भी लाभप्रद होता है और ज्योतिषीय उपाय करने चाहिए।
एक बात बहुत स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि मात्र ज्योतिषीय मंत्र-यंत्र से ही किसी रोग का निवारण नहीं किया जा सकता है क्योकि ग्रह स्थितियों को सुधारकर भी आप शरीर में आये भौतिक परिवर्तन को नहीं बदल सकते दूध जब तक दूध है तभी तक उसे बचा सकते हैं ,दही बनने पर वह दूध नहीं हो सकता इसलिए मात्र ज्योतिषीय उपायों के बल पर बैठना घातक होगा क्योकि एक बात बहुत स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि मात्र ज्योतिषीय ,मंत्र,यंत्र से ही किसी रोग का निवारण नहीं किया जा सकता है क्योकि ग्रह स्थितियों को सुधारकर भी आप शरीर में आये भौतिक परिवर्तन को नहीं बदल सकते ... रोगी में सकारात्मक ऊर्जा ,धनात्मक ऊर्जा बढ़ा देंगे जिससे लड़ने की क्षमता बढ़ जाए भाग्य अगर किन्ही नकारात्मक ऊर्जा के कारण बाधित है अथवा नकारात्मक ऊर्जा रोग बढ़ा रही है तो उसे मंत्र हटा देंगे जीवनी शक्ति बढ़ा देंगे पर रोग हो गया तो उसे केवल इनसे खत्म करना मुश्किल है। ज्योतिषीय उपाय, मंत्र के साथ अवचेतन को बल देना बेहतर होता है क्योकि अंततः सारा खेल अवचेतन को ही करना होता है अगर यह निराश हताश हुआ तो फिर न दवा काम करेगी न कोई उपाय इन सभी के साथ-साथ औषधि सेवन, चिकित्सकों के द्वारा दी गई सलाह आदि का पालन किया जाना उतना ही आवश्यक है। तभी इसका पूर्ण लाभ सम्भव होगा।
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