DIWALI-2018 || पांच बातों का रखें ध्यान, तो इस दीपावली सिद्ध होंगे सब काम || Suresh Shrimali

पांच बातों का रखें ध्यान, तो इस
दीपावली सिद्ध होंगे सब काम!!



 अगर आप माता महालक्ष्मी की साधना-आराधना से उन्हें प्रसन्न कर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिए तैयार हैं तो ये पांच बाते आवष्यक है। अगर आपने इन पांच बातों का रखा ध्यान तो निष्चित ही सिद्ध होंगे सभी कार्य। कौनसी है ये पांच बातें:-

पहला है, संकल्प:-
संकल्प को आध्यात्म का प्राण माना गया है। संकल्प का अर्थ तो आप जानते ही हैं ना। संकल्प का अर्थ होता है, किसी भी कार्य के लिए दृढनिष्चय कर लेना। कई लोग इस संकल्प के साथ व्रत भी रख लेते हैं। जैसे मेरा प्रमोषन नहीं होगा तब तक मैं नमक नहीं खाउंगा। अब नमक का प्रमोषन से तो कोई लेना देना नहीं। लेकिन जब-जब आप भोजन करते हैं आपको बिना नमक का भोजन स्वादहीन लगता है और आप प्रमोषन के लिए अधिक मेहनत करते हैं। चाणक्य ने संकल्प किया कि जब तक नंदवंष का नाष न कर दूंगा बाल नहीं बांधूंगा। और आखिर चाणक्य ने कर दिखाया। आप भी कोई व्रत लें यह आवष्यक नहीं लेकिन संकल्प अवष्य करें। संकल्प करें कि पूरी निष्ठा, विष्वास के साथ इस बार माॅ महालक्ष्मी की साधना कर अपने मनोरथ पूरे करने है।

दूसरा है, समय:-
हमारी कुंडली में ग्रहों की स्थिति क्या है और हमें किस मुहूर्त में पूजा करनी चाहिए। क्या सिंह लग्न में पूजा ही हमारे लिए श्रेष्ठ है या फिर वृषभ या किसी अन्य लग्न में हमें पूजा करनी है। किस लग्न वाले जातक को किस मुहूर्त में पूजा करना श्रेष्ठ है। यह मैं आपको दीपावली पूजन के साथ बताउंगा।

तीसरा है, पूजन कक्ष:-
आपके घर का पूजन कक्ष ही सर्वश्रेष्ठ स्थान है। इसे हमेशा स्वच्छ और शुद्ध रखना चाहिए। वहीं आपको दीपावली की पूजा करनी चाहिए। क्योंकि आप वहां नित्य दिन में दो बार, सुबह और शाम भगवान की पूजा-आराधना और मंत्रोच्चारण करते है। ऐसा करने से वहां एक औरा यानि शक्तिपीठ का निर्माण होता है। ऐसे में उस स्थल पर की गई किसी भी पूजा से पूर्ण फलों की प्राप्ति होगी।

चैथा है, श्रद्धा:-
किसी भी पूजा पाठ, देवी-देवताओं के स्मरण एवं भक्ति में श्रद्धा, आस्था और विश्वास का होना नितांत ही आवश्यक है। बिना इनके इस सांसारिक जीवन में परम पिता परमेश्वर से कनेक्शन होना संभव नहीं। इस प्रकार से किये गये कार्य में व्यक्ति के जीवन में उत्थान होता है। व्यक्ति को कैसे संयमित रहना चाहिये यह भगवान शिव के परिवार की ओर देखने से पता चलता है। जीवन में सामंजस्य व संतुलन का होना जरूरी है।

पांचवा है, उत्साह और उमंग:-
हम भारतीय चैत्र से फाल्गुन तक बारहों महीनों में हर माह कोई न कोई पर्व या त्यौहार अवष्य ही मनाते हैं। हमारे यहां तो नववर्ष का प्रारंभ ही नवरात्रा के त्यौहार से होता है। धनतेरस से दीपावली तक का पंचपर्व हमारे सभी पर्वो और त्यौहारों में प्रमुख है। उत्सव हम देवी-देवताओं के लिए मनाते हैं लेकिन हमारी कामना यह होती है कि उत्सव हमारे जीवन में उत्साह और उमंग भी लाएं। इसीलिए उत्सव को बिना उत्साह और उमंग के मनाने का ना कोई लाभ है ना कोई औचित्य। जीवन में लाभ-हानि, दुख-सुख, जय-पराजय, सम्पन्नता-दरिद्रता, रोग-षोक आते हैं और चले जाते हैं। स्थाई कुछ भी नहीं है। न किसी के जीवन में सुख स्थाई रहा है न ही दुख। उत्सव जब आते हैं तो हम अपनी परेषानियों, नित के झंझटों और लाभ-हानि से उपर उठकर  उत्साह और उमंग के साथ देवी-देवताओं को मनाएं। उनकी साधना-आराधना कर उन्हें प्रसन्न करें और मनोकामनाओं की पूर्ति करें। लेकिन अगर मन में उत्साह नहीं, उमंग नहीं केवल औपचारिक पूजा-पाठ कर लें या किसी के कहने पर कोई विशिष्ट पूजा कर लें तो उसका लाभ प्राप्त नहीं होगा। क्योंकि अगर आपके मन में उमंग और उत्साह नहीं है तो आपमें श्रद्धा भी नहीं हो सकती। उपासना की तो नींव ही श्रद्धा है। जहां श्रद्धा वहां सिद्धि। यह सिद्धि आप भी प्राप्त कर सकते हैं। संकल्प लीजिए, षुभ समय व घर के पूजा स्थल पर विधि-विधान के साथ पूजा सम्पन्न करें, पूरी श्रद्धा के साथ उत्साह व उमंग से धनतेरस से भय्यादूज तक पंच दिवसीय पर्व को मनाइए। विष्वास रखिए आपने इन पांच बातों का ध्यान रखा तो आपके मनोरथ अवष्य सिद्ध होंगे।


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