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Diwali 2017 || श्री महालक्ष्मी शक्ति साधना || Suresh Shrimali
|| श्री महालक्ष्मी शक्ति साधना ||
आज के इस विशेष अवसर पर मैं आपको ‘‘श्रीमहालक्ष्मी शक्ति साधना‘‘ बताने जा रहा हूं। साथ ही साथ दीपावली का महत्व और माँ लक्ष्मी का महत्व भी बताऊंगा।हर हिन्दू परिवार में दीपावली की रात्रि को धन-दौलत की प्राप्ति के लिए लक्ष्मी का पूजन होता है। ऐसा माना जाता है कि दीपावली की रात लक्ष्मी घर में आती हैं। इसीलिए लोग देहरी से घर के अंदर जाते हुए लक्ष्मी जी के पांव (पैर) बनाते हैं। पुराणों के आधार पर कुल और गौत्रादि के अनुसार लक्ष्मी पूजन की अनेक तिथियां प्रचलित रही, लेकिन दीपावली पर महालक्ष्मी पूजन की विशेष लोकप्रियता प्राप्त हुई है। व्यापारी वर्ग यानि की बिजनेसमेन के लिए तो लक्ष्मी पूजन का महत्व और भी अधिक होता है। क्योंकि वे पूजा के बाद अपनी नई बहियों पर शुभ-लाभ, श्रीगणेशाय नमः, श्रीलक्ष्मी जी सदा सहाय छैः और स्वास्तिक व ऊँ को भी लिखते हैं, फिर लेखा-जोखा आरंभ करते हैं।धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि पाप कर्माें से प्राप्त लक्ष्मी मृत्यु दायिनी होती है, जबकि धर्म पूर्वक प्राप्त लक्ष्मी में स्थाईत्व होता है इसीलिए हमारे शास्त्रों मे यंत्र, मंत्र और तंत्र आदि के प्रयोगों का विधान है, ताकि लक्ष्मी अपने साथ सुख-शांति और प्रसन्नता भी लेकर आएं। आप सभी भक्तजनों की सहजता को ध्यान में रखते हुए हमारे आध्यात्मिक साधना सिद्धि केन्द्र के विद्वान पण्डितों ने हमारे प्राचीन ग्रंथों व शास्त्रों से खोज निकाली हैं एक ऐसी अद्भूत व विलक्षण साधना जिसके द्वारा आपको आर्थिक उन्नति के साथ-साथ मानसिक व शारीरिक कष्टों से मुक्ति प्राप्त होकर आप भी अपना जीवन सुख-समृद्धि व शांतिपूर्वक यापन कर सकेंगे और वह विलक्षण साधना जिसे पूर्ण रूप से मंत्र चैतन्ययुक्त एवं प्राणसिद्ध किया हैं वह साधना ‘‘श्रीमहालक्ष्मी शक्ति साधना‘‘ के नाम से विख्यात है।इस साधना के लिए आपको श्रीमहालक्ष्मी शक्ति यंत्र, महालक्ष्मी प्रिय कच्छप, श्रीरत्न, अष्टगंध व माला की आवश्यकता रहेगी। यह साधना आपको 19 अक्टूबर को वृषभ अथवा सिंह लग्न में सम्पन्न करनी है। वृषभ लग्न:- रात्रि 07 बजकर 36 मिनट से 09 बजकर 32 मिनट तक। सिंह लग्न:- मध्य रात्रि 02 बजकर 04 मिनट से 04 बजकर 21 मिनट तक।
साधना आरम्भ करने से पूर्व आप स्नानदि से निवृत होकर पुरुष श्वेत वस्त्र एवं स्त्रियां या कन्याएं लाल वस्त्र धारण करें। साथ ही यदि संभव हो सके तो नए वस्त्र पहने तथा पूजन करते समय स्त्रियां पूर्ण रूप से श्रृंगार करके सभी आभूषण धारण करके पूजा में बैठे। क्योंकि स्त्रियां स्वयं लक्ष्मी का स्वरूप होती है और गृहलक्ष्मी होती है। इसलिए माँ लक्ष्मी की पूजा मेें उनकी प्रसन्नता के लिए इस बात का अवश्य ध्यान रखें। रूपचतुर्दशी वाली साधना में से मंत्र सिद्ध श्रीहनुमान सुरक्षा यंत्र को मंदिर में रख दें तथा बाकी बची हुई सभी सामग्री को उसी लाल वस्त्र में बांधकर तीन गांठ लगाकर परिवार के सभी सदस्यों के ऊपर से सात-सात बार उसारे व घर व व्यावसायिक स्थल पर भी सब जगह लेकर घुमा दें, फिर उस पोटली को बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें व मन-मन यह कामना करें की दीपावली जैसे महापर्व से सारी परेशानियों आपके घर से दूर जा रही है। फिर बायें बाजोट पर शुभ का चिन्ह अक्षत द्वारा अंकित करें और उस पर चांदी अथवा स्टील की थाली रखकर उसमें केसर-कुंकुम द्वारा श्रीं का चिन्ह् बनाकर उस पर आपके घर में जितने भी चांदी के सिक्के तथा पूजा के नोट, स्वर्ण-रजत आभूषण आदि जो भी हो उन्हें स्थापित कर दें। फिर उन सभी पर केसर-कुमकुम द्वारा तिलक करें, अक्षत एवं गुलाब के पुष्प चढ़ाएं। फिर दांये बाजोट पर भी अक्षत द्वारा लाभ का चिन्ह अंकित करके चांदी, तांबे अथवा स्टील का कलश जल से भरकर स्थापित करें और मन ही मन वरूण देवता का ध्यान करें तथा ऐसा प्रतीत करते हुए कि सभी तीर्थों का जल इस कलश में भर रहा हैं मन में यह भाव रखें और कलश पर नारियल लाल कपड़े में बांधकर स्थापित कर दें तथा नारियल के चारों ओर अशोक वृक्ष के पत्ते डाल दें। फिर दोनों बाजोट के आगे की ओर बाईं तरफ तेल का तथा दाहिनी तरफ घी का दीपक प्रज्जवलित करें। फिर मध्य के बाजोट पर चने की दाल की चार ढेरी बनाएं और उस पर एक-एक श्रीरत्न रख दें। फिर मध्य में अक्षत द्वारा श्रीं का चिन्ह बनावें और उस पर चांदी अथवा स्टील की थाली स्थापित कर दें तथा उस पर केसर-कुंकुम द्वारा पुनः श्रीं का चिन्ह् अंकित कर दें। फिर अपने सामने एक दूसरी थाली लेकर उसमें महालक्ष्मी शक्ति यंत्र एवं महालक्ष्मी प्रिय कच्छप स्थापित करें। फिर आप सवा किलो कच्चा दूध लेकर उसमें थोड़ा-सा मक्खन व केसर मिलाकर थाली में रखी सामग्री पर अभिषेक करें तथा अभिषेक करते-करते ‘‘ऊँ श्रीं हृीं श्रीं कमले-कमलालये प्रसीद-प्रसीद श्रीं हृीं श्रीं ऊँ महालक्ष्मयै नमः‘‘ मंत्र का उच्चारण करते रहे तथा अभिषेक करते रहे। इस बात का जरूर ध्यान रखें कि पूजा शुद्ध हृदय व साफ मन से करें। मन में किसी भी प्रकार की चिंता, दुख, परेशानी न रखें बस ऐसी कल्पना कीजिए कि हमारे घर में देवी महालक्ष्मी पधार रही हैं जिसे हमें अपने घर में स्थाई रूप से विराजमान करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करना है। अभिषेक पूर्ण होने के पश्चात् यंत्र व कच्छप को पुनः साफ करके सामने बाजोट पर रखी थाली में स्थापित कर दें तथा उनके आगे की ओर आपके जितने भी लक्ष्मी प्रदायक कल्प जैसे- श्रीयंत्र, दक्षिणावर्ती शंख, एकाक्षी नारियल या लक्ष्मी संबंधी कोई भी पूजन सामग्री हैं उसे भी पूजन के बाजोट पर स्थापित करें। फिर सभी पर केसर-कुंकुम द्वारा तिलक करें, अक्षत चढ़ाएं तथा लक्ष्मीप्रिय कमल पुष्प अवश्य चढ़ाएं और खीर, पंचमेवा व हलवे का भोग लगाएं तथा लक्ष्मी माला से इस मंत्र का जाप 11 माला करें।
‘‘ऊँ हृीं श्रीं सम्पूर्ण महालक्ष्मी ममगृहे आगच्छ।।‘‘
मंत्र समाप्ति के पश्चात् आप दोनों हाथ फैलाकर माँ लक्ष्मी से प्रार्थना करें कि हे! माँ लक्ष्मी मैंने आपकी तन, मन, धन से पूजा-अर्चना व साधना सम्पन्न की हैं यदि इसमें किसी भी प्रकार से त्रुटि हो गई हैं तो मुझे अपना बालक/बलिका समझकर क्षमा करें तथा मुझे व मेरे परिवार को आशीर्वाद प्रदान करें जिससे हमारे घर-परिवार में सदैव सुख-समृद्धि व ऐश्वर्य की प्राप्ति हो तथा हमें हमेशा मानसिक व शारीरिक कष्टों से मुक्ति प्राप्त हो। इस प्रकार प्रार्थना करने के पश्चात् सभी पूजन सामग्री यथा स्थिति रहने दें तथा जो निर्माल्य जल जिससे अभिषेक सम्पन्न किया था उसे लेकर घर के प्रत्येक कोने में छिड़क दें जिससे आपके घर में व्याप्त सभी नकारात्मक ऊर्जाएं समाप्त होगी साथ ही किसी भी प्रकार के टोने-टोटके या गलत क्रियाएं आदि होगी तो वह भी समाप्त हो जायेगी। फिर बाकी बचे हुए जल को अगले दिन किसी भी पेड़-पौधे में विसर्जित कर दें। खीर, पंचमेवा व हलवे का प्रसाद घर के सभी सदस्य ग्रहण करें। मैं चाहता हूं कि आपके चेहरों पर सुखमय मुस्कान हमेशा बनी रहे। आप तरोताजा फूल से खिले-खिले नजर आए और याद रखें कि साधना व आराधना में वह शक्ति है जिसके जरिए आप क्या कुछ प्राप्त नहीं कर सकते। बस जरूरत है तो दृढ़ संकल्प व सच्ची निष्ठा की। फिर लक्ष्मी आप पर प्रसन्न होकर ही रहेगी।
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