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Diwali 2017 || जानिए दीपावली की रात महालक्ष्मी पूजन व लक्ष्मी पूजा में अंतर || Suresh Shrimali
|| क्या अंतर है लक्ष्मी पूजा और महालक्ष्मी पूजन में ||
19 अक्टूबर को निराशाओं से आगे बढ़कर आशा का संचार करती हुई रात्रि जो कि हमारी सनातन भूमि का सबसे बड़ा त्यौहार है। धनतेरस, रूपचतुर्दशी, गोवर्धन पूजा और भैय्यादूज के बिल्कुल मध्य में स्थित ये त्यौहार खुशियां बरसाता है, ईश्वरीय कृपा का संचार करता है। इस दिन हम लक्ष्मी पूजा नहीं करते, महालक्ष्मी पूजन करते है तो क्या अंतर है इन दोनों में-
सामान्तया जब हम घर में पूजा-अर्चना करते हैं तो सारे देवताओं के साथ लक्ष्मी पूजा भी की जाती है। लेकिन महालक्ष्मी पूजन में मां के उस अष्टलक्ष्मी स्वरूप का पूजन होता है, जो विद्या, धन, यश, कीर्ति, बुद्धि, मान, प्रतिष्ठा, निरोगी जीवन, धर्मपरायण पत्नी, संस्कारयुक्त संतान, शांति और समृद्धि का वातावरण और इसके अनंत आध्यात्मिक ऊर्जा के रूप में विराजमान होती है। ये मां का स्थिर स्वरूप है, यदि एक बार आपके घर में इस रूप में मां का आगमन हो गया तो फिर देखिए दीपों की जगमगाहट आपके जीवन को कैसे रोशन करती रहेगी।
ज्यादातर लोग महालक्ष्मी पूजन को रात के समय तक ही सीमित कर लेते हैं लेकिन ये विधि-विधान सुबह से ही शुरू हो जाता है। इस दिन आपके घर झाडू-पौछा करने के लिए यदि कोई सेवक है तो उस दिन पूजन कक्ष के आस-पास का जो क्षेत्र है, वहां उससे साफ-सफाई ना करवाएं, बल्कि उस स्थान की साफ-सफाई आप स्वयं करें और सुबह ही नल से आने वाला ताजा पानी अलग से पूजा के लिए भरकर रखना चाहिए। वस्त्र धूले हुए हो और पारम्परिक जो हमारे परिधान है, वही सुबह से धारण करने चाहिए। कमल पुष्प सहित जितनी भी पूजन सामग्री है वो दोपहर के समय ही व्यवस्थित कर लेनी चाहिए। शाम के समय ही जो पकवान आदि आपको बनाने हो, उनसे निवृत्त हो जाना चाहिए। फिर दीपक लगाते समय सबसे पहले दीपमालिका पूजन करना चाहिए।
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