Roop Chaturdashi 2017|| रूप चतुर्दशी का महत्व एवं इससे जुडी पोराणिक कथा || Suresh Shrimali





                                        || रूप चतुर्दशी ||


 आप चाहे रूप चैदस कह दीजिए, नरक चतुर्दशी, काली चैदस या फिर छोटी दीपावली, इस बार 18 अक्टूबर को आने वाला यह त्यौहार धनतेरस से शुरू होकर भैयादूज तक चलने वाले पंचदिवसीय महापर्व का दूसरा दिन होता है।  धन के साथ रूप आता है, क्रिकेटर, फिल्म स्टार, बिजनस मैन, और जाता है तब चेहरा देखो।


 भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था और फिर नरकासुर का वध करने के बाद ब्रह्ममुहूर्त में तेल स्नान की थी। नरकासुर का वध होने की वजह से इस चैदस को नरक चतुर्दशी के नाम से जाना गया। ऐसा बताया जाता है कि जब श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था तो उस समय कृष्ण की पत्नी सत्यभामा जिन्हें भूदेवी का अवतार भी कहा गया है, वो भी साथ थी और उनके साथ असुरों का नाश करने वाली माँ काली भी श्रीकृष्ण के साथ थी। इस वजह से इसे काली चैदस के नाम से भी जाना गया।


  सबसे पहले धनतेरस यानि माँ लक्ष्मी, कुबेर और यम की पूजा का दिन और उसके बाद रूपचतुर्दशी यानि इस दिन यत्न-प्रयत्न करने से रूप निखरता है। सुंदर कौन नहीं दिखता चाहता? तो इस दिन की शुरूआत ब्रह्ममुहूर्त से होती है। सुबह शरीर पर तेल मालिश कीजिए क्योंकि नरकासुर के मर्दन के बाद श्रीकृष्ण ने ऐसा ही किया था। इसके बाद ऊबटन बनाकर स्नान करनी चाहिए। इस ऊबटन का आधार यदि पंचपदार्थ हो तो बहुत ही बेहतर। पंचपदार्थाें में बेसन, नींबू का रस, सरसों का तेल, हल्दी और दूध होना चाहिए। अब स्नान के पश्चात् श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। सुंदर रूप और स्वस्थ देह प्राप्त होती है।


 इस दिन इष्टदेव की पूजा का भी विशेष विधान है। पूजन के लिए एक थाल लीजिए, उसकी चारों दिशाओं में चार दीपक जलाएं और 16 छोटे दीपक उस बडे़ थाल के बीच में रखें। अब थाल के बाहर अबीर, गुलाल तथा पुष्प से इष्टदेव की पूजा करें और अब ये सारे दीये घर की अलग-अलग दिशाओं में रख दें। इससे इष्टदेव प्रसन्न होते है और हम पर कृपा करते है। इस तरह रूप चतुर्दशी हमारे जीवन में विशेष महत्व रखती है। यदि हम उस महत्व को समझे और उसी तरह त्यौहार मनाए तो जीवन आनंद से भरा होगा। आप रूपवान हो, बाह्य और आंतरिक सुंदरता लगातार बढ़े। ऐसी कामनाओं के साथ छोटी दीपावली की शुभकामनाएं।

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