Suresh Shrimali is versatile and multifaceted personality. Rarely do we come across such a person in our day to day life. There are people who acquire knowledge and there are people who get success but all that comes at an advanced age but to achieve such heights and at such a young age this is something that boggles our mind. And this is what makes him a brilliant exception
Navratri 2017 || नवरात्री में हुआ चमत्कार|| सत्य घटना पर आधारित || By Suresh Shrimali
एक सच्ची कहानी........कुछ साल पहले ही ये चमत्कार हुआ था नवरात्रि में
सफर, संघर्ष, शहर और सफलता ये प्रत्येक इंसान के जीवन के आसपास से गुजरी हुई स्थितियां है। बिल्कुल अंजान व्यक्ति आपको रेल के सफर या फिर रास्ते में आपको पैदल चलता हुआ देखकर लिफ्ट देते हुए मिले ही होंगे। ऐसे ही एक सफर की कहानी नवरात्रि में मुझसे मिलने आएं एक सज्जन ने साझा की थी। तो इस बार जब मैं नवरात्रि के प्रयोग और जानकारियां देने की तैयारियां कर रहा था, उसी समय तय कर लिया था कि माँ की कृपा किस तरह जिंदगी बदल देती है। ये इस कहानी के माध्यम से आपको जरूर बताऊंगा। मेरे दिल्ली स्थित कार्यालय में जब सुबह मैं पहुंचा तो शिष्य ने जानकारी दी, कि एक सज्जन जिनका नाम मिथिलेश कुमार है। सुबह 6 बजे ही कार्यालय के बाहर आ गए, जिन्होंने जन्म पत्रिका दिखाने के लिए समय आदि कुछ नहीं ले रखा है, बस आपसे मिलना चाहते है। हमने काफी मना किया लेकिन जिद्द पर अड़े हुए है कि दर्शन करके ही जाएंगे। अब मेरी भी उत्सुकता जाग गई कि इतना लालयित व्यक्ति कौन है। मैंने सबसे पहले उन्हें ही अंदर बुला लिया। चरण स्पर्श और वंदना के बाद वो कहने लगे कि गुरूदेव! बस कोई भी आकांक्षा नहीं है। माँ की कृपा से जीवन में आनन्द ही आनन्द है।इन दो मिनटो की मुलाकात में ही मेरा माथा ठनका कि आप तो मुझसे तकरीबन 15-16 बरस पहले जोधपुर में ही आकर मिले थे और ये मुलाकात इसलिए याद रही कि ईश्वर और उसकी सत्ता में आपको कत्तई विश्वास नहीं था और आज तो आप तिलक लगाकर आएं है, झण्डेवालान मंदिर का प्रसाद भी साथ है, ये परिवर्तन कैसे आया। सज्जन बताने लगे कि गुरुजी आपने उस समय जो उपाय बताए थे, वो मैंने तो नहीं माने लेकिन मेरी पत्नी पूरी श्रद्धा के साथ वो उपाय करती रही। मैं यही समझता रहा कि मेरा किया हुआ कार्य ही मुझे सही रास्ते पर ला रहा है। फिर एक दिन मेरे साथ एक अनोखी घटना घटी। मुझे आॅफिस के किसी काम से दो दिन के लिए तहसील मुख्यालय जो कि शहर से 50 किलोमीटर था, वहां जाना पड़ा। जब मैं बस में चढ़ा तो वहां पांव रखने तक की जगह भी नहीं थी। लेकिन अगले 15-20 मिनटों में थोड़ी सवारियां उतार जाने के बाद वहां ढंग से खड़े रहने लायक स्थिति हुई। तभी एक बुजुर्ग ने मुझे इशारा करके अपने पास बैठने को कहा। वो जगह बहुत थोड़ी थी, लेकिन अनमने ढंग से ही सही मैं वहां बैठ गया और अपनी आदत के अनुसार सारी व्यवस्थाओं को कोसने लगा। वो बुजुर्ग शांतचित भाव से बस सुनते रहे, फिर बोले काफी परेशान दिखते है आप, माँ कृपा करें आप पर। मेरे मुंह से अनायास ही निकल पड़ा, काहे कि कृपा करेगी माँ। उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा कि माँ की कृपा ना होती थी तो क्या तुम इस अवस्था तक पहुंच पाते। मेरे पांव के नीचे से मानो जमीन ही खिसक गई, शरीर पानी-पानी था, ना जाने कितने सालों की नींद से उठा था मैं, लगा सारे पर्दे गिर गए हो।
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