Dussehra 2017 ||दशहरा विशेष......... तो हर एक काम में मिलेगी विजय ||By Suresh Shrimali



              || विजयदशमी पर संसार से विजय पाने का मंत्र ||


                                 रावण रथी बिरथ रघुबीरा। देखि विभीषन भयउ अधीरा।।

                                 अधिक प्रीति मन भा संदेहा। बंदि चरन कह सहित सनेहा।।

                                 नाथ न रथ नहि तन पद त्राना। केहि बिधि जितब बीर बलवाना।।

                                 सुनहु सखा कह कृपानिधाना। जेहि जय होइ सो स्यंदन आना।।

                                 सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका।।

                                 बल बिबेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे।।

                                 ईस भजनु सारथी सुजाना। बिरति चर्म संतोष कृपाना।।

                                 दान परसु बुधि सक्ति प्रचंड़ा। बर बिग्यान कठिन कोदंडा।।

                                 अमल अचल मन त्रोन समाना। सम जम नियम सिलीमुख नाना।।

                                 कवच अभेद विप्र गुरू पूजा। एहि सम विजय उपाय न दूजा।।

                                 सखा धर्ममय अस रथ जाके। जीतन कहँ न कतहुँ रिपु ताके।।

राम-रावण युद्ध के समय रावण को रथ पर देखकर विभीषण अधीर हो जाते है और प्रभु श्रीराम से कहते है कि हे प्रभु! रावण रथ पर है और आप बिना रथ के यहाँ तक कि आपके पांव नंगे पांव है। मेरे हृदय में शंकाएं उत्पन्न हो रही है प्रभु। श्रीराम के चरणों में नत-मस्तक होकर विभीषण चिंता जताते है। प्रभु श्रीराम मुस्कुराते हुए कहते है कि हे सखा! ये वो रथ नहीं है जो व्यक्ति को विजयश्री का वरण करवाता है। मैं उस रथ का तुम्हें वर्णन करता हूँ। सौरज और धीरज इस रथ के चक्के है। सत्य और शील दृढ़ ध्वजा पताका है। बल, विवेक, दम और परहित घोड़े है। श्रमा और कृपा वो रस्सियां है जो घोड़े और रथ के साथ जुड़ी हुई है। प्रभु का भजन इस रथ का सारथी है। बिरति, चर्म और संतोष कृपाण है। दान, बुद्धि और शक्ति फरसे है। इसी तरह अभेद्य कवच है ब्राह्मण और गुरू पूजा। इसके अलावा शत्रु से विजय का उपाय कोई दूसरा नहीं है। हे मित्र ऐसा धर्ममय रथ जिसके पास है उसे कोई भी शत्रु नहीं हरा सकता।
 दर्शकों विद्वान लोग श्री रामचन्द्र जी के द्वारा दिए गए इस ज्ञान को गीता ज्ञान के समकक्ष ठहराते है। एक ज्ञान कुरूक्षेत्र के रण में श्रीकृष्ण द्वारा संदेह में फंसे हुए अर्जुन को दिया गया तो ये दिव्य ज्ञान अधीर हो चुके विभीषण को प्रभु श्रीराम चन्द्र जी ने दिया।
 जो भी व्यक्ति जीवित है वो संसार पर विजय की कामना करता है। विजयदशमी का पर्व अनीति पर विजय का पर्व है। शत्रुओं का संहार कर उन पर जय प्राप्त करने का पर्व है। प्रत्येक स्थिति में दृढ़ रहकर आगे बढ़ने का पर्व है। दसाशीष रावण महाज्ञानी था। परम् शिव भक्त था लेकिन अहंकार उसका शत्रु बना। जिस पर वो विजय प्राप्त नहीं कर पाया। देखिए ये बहुत गूढ़ बात है। हम में से प्रत्येक व्यक्ति बाहरी शत्रुओं को देखता है बाहरी समस्याओं को देखता हैं और विजय दशमी के पर्व को भी। बस बाहरी शत्रुओं पर विजय प्राप्त करना ही समझता है। आपमें से प्रत्येक व्यक्ति का दुश्मन आपके भीतर ही छिपा है। किसी का दुश्मन है आलस, किसी का दुश्मन है अंहकार, किसी का दुश्मन उसकी सोच तो किसी का दुश्मन है परनिंदा।
 इस बार विजयदशमी 30 सितम्बर 2017 को है। मां की साधना के बाद विजय का ये अभूतपूर्व पर्व जिसे हम अबुझ संज्ञक मुहूर्त के रूप में भी जानते है।
इस दिन साधनाओं का भी विशेष महत्व है। आपमें  से जो भी व्यक्ति अपने जीवन के किसी भी क्षेत्र में विजय प्राप्त करना चाहते है तो मैं आपको अचूक साधना बताने जा रहा हूँ, अमोघ अस्त्र साधना।
 ज्यादातर साधनाएं रात्रि के समय से जुड़ी होती है लेकिन ये साधना ब्रह्म मुहूर्त से जुड़ी है। सर्वप्रथम ब्रह्म मुहूर्त मंे उठे स्नानादि कार्यों से निवृत हो और पूजन कक्ष में पहूँच जाएं। भगवान की जो आप नित्य-प्रतिदिन पूजा-अर्चना करते है। उससे निवृत हो ले और 21 बार ऊँ का उच्चारण करें। इससे आपका मन शून्य अवस्था पर पहूँच जायेगा। इसके बाद उन सारी क्षमताओं पर विचार करें जो ईश्वर ने आपको दी है और जिसके सहारे आपने आज तक इस लाईफ में सरवाइव किया है और उन्नति की है। देखिए ये साधना मन की आतंरिक स्थितियों से जुड़ी हुई है। अब जब आप अपनी क्षमताओं पर विचार करेंगे तो विजयदशमी के दिन सम्पूर्ण ऊर्जा के साथ आपको अपनी क्षमताएं दिखाई देंगी। इससे जीवन में जो धुंधलका छाया हुआ हैं और अस्पष्टता है उन सभी से मुक्ति मिलेंगी। अब इस प्रोसेस के बाद घी का एक दीपक जलाएं और उसके चारों ओर तेल के 11 दीपक स्थापित कर दें। अब आपका पूरा ध्यान मध्य में जो दीपक जल रहा है उस ओर होना चाहिए और एक छोटा-सा मंत्र जो मैं बता रहा हूँ उसका जाप करें-
‘‘ऊँ श्रीं हृीं ऐं विजय वरदाय देहि मम वांछित फलम् ऐं हृीं श्रीं ऊँ‘‘
 11 बार, 21 बार, 51 बार या 108 बार यानि की पूरी माला जाप करें। इसके बाद 15 मिनट के लिए अपनी दोनों भौंहो के बीच जो स्थान है वहां कन्सनर्टेट करें। अब घी का दीया अपने पूज कक्ष में रख दें और ये 11 तेल के दीये किसी भी पीपल के वृक्ष के नीचे रख आएं और वहीं खड़े होकर प्रार्थना करें कि हे देव मुझे मेरे शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की शक्ति दें। यह दशहरा आपके जीवन में नवीन ऊर्जा का संचार करें, नवपौरूष भरे और आप संसार में अपने नाम की अमिट छाप छोड़े ऐसी ही मंगलकामनाओं के साथ विजयदशमी की हार्दिक शुभ कामनाएं।


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