Diwali 2017 ||Bhai dooj पर अपने बच्चों से अवश्य कराए "विघ्नहर्ता श्रीगणेश साधना‘‘|| Suresh Shrimali




 
                        || भैय्यादूज का महत्व व इसकी कथा ||


 सूर्य की दो पत्नियों से तीन संताने शनि, यम और यमी हुए। यम और यमी संध्या से जबकि शनि छाया से उत्पन्न हुए। शनि चूंकि काले थे, क्योंकि वे छाया के पुत्र थे अतः तीनों भाई-बहन आपस में अक्सर लड़ाई करते और शनि यम व यमी से मारपीट करते। अंततः यम तो यम लोक चले गए और यमी यमुना नदी बनकर धरती पर आ गई। बाद में शनिदेव भी महादेव के परम भक्त बन गए और शिव भक्ति से उन्हें न्यायाधीश का पद भी प्राप्त हुआ। लेकिन बचपन से भाई-बहनों के बीच प्रेम-प्यार न रहने से घर की शांति नष्ट हो जाती है और घर में तनाव, उपद्रव और मन-मुटाव के कारण मतभेद आते है और जीवन का सुख समाप्त हो जाता है। सुख के लिए शांति पहली आवश्यकता है। आज के दिन यम अपनी बहन यमी यानि यमुना के घर आए और प्रेम से भोजन करने के उपरांत बहन का आशीर्वाद प्रदान किया। भाई-बहन प्यार के बंध में बंधे, साथ ही पूरे परिवार को भी प्रेम के बंधन में बांधे रखें ताकि परिवार में शांति हो और जब शांति होगी तभी सुख और समृद्धि का उपयोग हो पाएगा।


भाई-बहनों के लिए राखी से भी बड़ा त्यौहार है भाईदूज


  दीपावली पर चलने वाले पंचदिवसीय त्यौहार का अंतिम दिन भाईदूज के रूप में मनाया जाता है। कहीं भाई टीका, भाऊबीज, भ्रातृ द्वितीय के नाम से भी इस त्यौहार को जाना जाता है। पौराणिक अर्थाें में यदि मैं बात करूं तो ये त्यौहार रक्षाबंधन से भी कहीं अर्थाें में बड़ा त्यौहार है। जहाँ राखी के दिन बहन भाई के घर जाती है वहीं इस दिन भाई, बहन के घर जाता है और रक्षासूत्र बंधवाता है। एक तरह से मौली, लाल धागा बंधवाता है। कुमकुम से तिलक करती है भाई के माथे पर और ईश्वर से उसके लंबी उम्र की कामना करती है। नरकासुर का वध करने के बाद श्रीकृष्ण, बहन सुभद्रा के पास गए थे और सुभद्रा ने तिलक लगाकर उनका अभिनंदन किया था और इसी दिन यमराज भी अपनी बहन यमुना के पास गए थे और उनसे वचन लिया था कि जो भी बहन इस दिन आपसे भाई के लंबी उम्र की कामना करेगी, उसे आप निर्भयता का आशीर्वाद देंगे। यदि धनतेरस के दिन कोई व्यक्ति यमदीप जलाना भूल जाएं तो इस दिन भी यमदीप जलाया जा सकता है। 


यह तो था भैय्यादूज का महत्व अब मैं आपको बताता हूं कि दीपावली के इन पंच महापर्व पर ऐसा क्या विषेष करें जिससे लक्ष्मी दौड़ी चली आए आपके द्वार? क्या हैं उनको पाने के स्वर्णिम सूत्र......... किस तरह करें उनका स्वागत।


 दीपावली पर महालक्ष्मी के स्वागत के लिए रंगोली अवष्य बनाए। जिससे की आपके घर में संकारात्मक ऊर्जा प्रवेष कर सके और नकारात्मक ऊर्जाएं बाहर ही रह जाए। आप रंग-बिरंगे रंगों या फिर सुन्दर फूलों से खास तरह कि डिजाईन बना सकते हैं, जिससे आपके मन पर प्रोजेटिव म्ििमबज आएगा। 


 वास्तु दोष निवारण के लिए घर में वास्तु गणपति स्थापित करें, साथ ही घर के मुख्य द्वार पर वास्तु स्वास्तिक अवष्य लगाए, क्योंकि जब होगा शुभ वास्तु तभी आएगी महालक्ष्मी। 


सपरिवार प्रसन्नचित्त मुद्रा वाला चित्र लगाएं-सपनों से भी प्यारा होता है-हर किसी का घर-संसार। सभी चाहते हैं कि घर किसी का न टूटे। घर-संसार में सास-बहू के बीच झगडे़ अक्सर होते हैं। सास-बहू में आपसी प्रेम भाव बढ़ाने के लिए इन दोनों का हंसता हुआ एक छायाचित्र घर में लटकाना चाहिए, यह बहुत प्रभावकारी उपाय है।


नारंगी और नींबू के वृक्ष सौभाग्य तथा सम्पन्नता की निशानी माने जाते हैं। इन पेड़ों को मकान या आॅफिस के दरवाजे के सामने वाले हिस्से में लगाना चाहिए। नारंगी का पौधा अपने घर के बगीचे के दक्षिण-पूर्व दिशा के कोने में लगाएं, क्योंकि यह हिस्सा सम्पत्ति का सूचक माना जाता है। इस कोने में नारंगी का पौधा बहुत शुभ रहता है, जो स्वस्थ एवं अच्छे फल प्रदान करता है। नारंगी का रंग सुनहरा चमकदार होता है जो स्वर्ण का प्रतीक है। नए वर्ष के दौरान नारंगियों से लदे पेड़ अत्यधिक सौभाग्यशाली समझे जाते हैं।


घोड़े की नाल द्वारा भाग्य जगाइए- भारत में घोड़े की नाल को लोग शुभ और सौभाग्यवर्धक मानते हैं। अपनी सुरक्षा और सौभाग्य के लिए वे इसे अपने घर के मुख्य द्वार के ऊपर दरवाजे के फ्रेम के बाहर जड़ते हैं। सौभाग्य के लिए बहुत से व्यक्ति घोड़े की नाल को अंगुली में भी पहनते हैं। भारत के अलावा पश्चिमी देशों में भी घोड़े की नाल बहुत भाग्यशाली एवं शुभ मानी जाती है। घोड़े की नाल के आकार की भूमि आदर्श समझी जाती है। फेंगशुई के अनुसार भी भाग्य के लिए यह प्रशंसनीय आकार है। घोड़े की टांग में लगी ऐसी नाल उसके सतत् दौड़ते रहने के कारण घिसकर काफी ऊर्जा अर्जित कर लेती है। इसे आप अपने घर के मुख्य द्वार के ऊपर दरवाजे के फ्रेम के बाहर लगा सकते हैं।


दीपावली के पंचपर्वों के दिनों में आप एक नया ताला खरीद कर लाएं और फिर उसे अपने घर की चैखट पर आकर खोल दें ऐसा करने से आपकी बंद किस्मत के ताले खुल जाएंगे और आपका भाग्योद्य हो जाएगा।
जैसाकि मैंने बताया कि यह दिन सभी भाई-बहनों के लिए महत्वपूर्ण स्थान रखता है और भाई-बहिन के साथ पूरे परिवार का खास महत्व होता है। इसलिए इस विशेष अवसर पर आपको रिद्धि-सिद्धि, सुख-समृद्धि व शांति बनी रहने के लिए श्रीगणेश का आशीर्वाद अत्यन्त आवश्यक है। जिससे रिद्धि-सिद्धि सहित बुद्धि के अधिष्ठात्र देव गणपति का आशीर्वाद सभी को प्राप्त हो सके और सभी लाभान्वित हो सके इसलिए इस दिन आपको
विघ्नहर्ता श्रीगणेश साधना सम्पन्न करनी है। 


जिसे सम्पन्न कर बच्चे षिक्षा प्राप्ति में आ रही बाधाओं जैसे- परीक्षा में असफलता, बुद्धि का क्षीण होना, याददाष्त कमजोर होना जैसी परेशानियों से मुक्ति पा सकते है, साथ ही महालक्ष्मी का आषीर्वाद प्राप्त कर लक्ष्मीवान, समृद्धिवान, ऐष्वर्यवान व सभी भौतिक सुख-सुविधा प्राप्त कर सकते है। साथ ही साथ विघ्नहत्र्ता गणेषजी का आषीर्वाद प्राप्त कर भाग्यौन्नत्ति में आ रही आकस्मिक बाधाओं जैसे- नौकरी न मिल पाना, इन्टरव्यू में सफलता न मिल पाना, अधिक मेहनत उपरान्त भी श्रेष्ठ फल प्राप्त न हो पाना, उच्चस्थ अधिकारियों से अनबन, व्यापारिक परेषानियां जैसी को भी क्षीण करने में सहायक सिद्ध होगा। तो देर किस बात की आईए यह अचूक साधना सम्पन्न कर आप अपने भविष्य को उज्जवल बनाएं तथा उन्नत्ति की ओर अग्रसर हो जाएं।


इस साधना के लिए हमने ये सोचा की दीपावली पर बच्चों को भी लाभ मिले, समाज में किसी से पीछे न रहे, इसके लिए हमने विद्याप्रदायक श्रीगणेश कवच विषेष रूप से बच्चों के लिए निर्माण किया है। जिसमें श्रीगणेष की शक्ति हैं जिससे स्मरण शक्ति बढ़े। 


 
‘‘विघ्नहर्ता श्रीगणेश साधना‘‘ सम्पन्न करने के लिए आपको विद्याप्रदायक श्रीगणेश कवच, अभिमंत्रित नागकेशर, अभिमंत्रित कमलट्टे, मंत्रसिद्ध रक्षासूत्र व लक्ष्मी माला की आवश्यकता रहेगी।
 यह साधना आपको प्रातःकाल 08 बजकर 09 मिनट से 09 बजे के मध्य शुभ के चैघड़िये में या फिर 07 बजकर 28 मिनट से 09 बजकर 24 मिनट तक रात्रि में वृषभ लग्न में सम्पन्न करनी है। 


 यह साधना बच्चे को स्वयं करनी है, यदि बच्चा छोटा 
है तो माता-पिता बच्चे के नाम का संकल्प लेकर करें। सर्वप्रथम आप स्नानादि से निवृत होकर बीच वाले बाजोट पर रखी सामग्री को अन्य पात्र में डाल दें और वस्त्र पुनः बिछा दें, दोनों कलषों के पत्ते बदले दें और दोनों दीपक पुनः प्रज्जवलित कर दें। फिर एक थाली लेकर उसमें अष्टगंध द्वारा ‘‘ऊँ‘‘ चिन्ह बनाकर पुष्प की पंखुड़ियों का आसन बनाए तथा उस पर विद्याप्रदायक श्रीगणेश कवच विराजमान करें। 


 ध्यान रखें इस साधना के समय आपका मुँह पूर्व दिशा की ओर रहे, क्योंकि पूर्व से सूर्य उदय होता है। सूर्य आंखों की रौशनी, कोन्फिडेन्स का कारक है। सूर्य आत्म विष्वास के साथ शरीर को ऊर्जा देता है। सर्वप्रथम आप 108 बार ‘‘ऊँ आदित्याय नमः‘‘ का जाप करें और सूर्य व श्रीगणेश का ध्यान करे साथ ही अपने माता-पिता व गुरू का ध्यान करें। 


 फिर कलश में जल भरकर दूर्वा द्वारा ‘‘ऊँ गं गणपतये नमः‘‘ मंत्र का जाप करते-करते कवच पर अभिषेक करेें। 15 से 20 मिनट तक अभिषेक करते रहे। अभिषेक पूर्ण होने के पश्चात् कवच को शुद्ध जल से स्नान करवाएं। फिर दूसरी थाली लेकर उसमें केसर-अष्टगंध से स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर उस पर पुष्पों का आसन बनाएं और उस पर श्रीगणेश कवच स्थापित करें तथा कवच पर केसर-कुंकुम से तिलक करें, अक्षत, पुष्प व लड्डू चढ़ाए, धूप-दीप करें और इस मंत्र की पांच माला जाप करें। 


मंत्र:-
‘‘ऊँ हृीं हृीं श्रीं श्रीं विद्यादायक गणपतये नमो नमः।।‘‘ 


 मंत्र जाप पूर्ण हो जाने के पश्चात् सूर्यदेव, अपने माता-पिता, गुरू, माता लक्ष्मी एवं श्रीगणेश का ध्यान करें और निरन्तर आगे बढ़ते रहने की प्रार्थना करें। फिर श्रीगणेश कवच को धारण कर लें। 


उसके पश्चात् आपको एक ओर छोटी सी क्रिया सम्पन्न करनी है जिससे आपके जीवन में आ रही परेशानियां जैसे पढ़ाई करते-करते भूल जाना, कोन्फिडेस की कमी होना, नजर लग जाना, अचानक बीमार हो जाना या फिर निरन्तर मेहनत करने के उपरान्त उसका फल न मिल जाना जैसी स्थितियां समाप्त होकर आपको उच्च विद्या प्राप्ति में सहायक होगी। इसके लिए आपको एक नया पीला कपड़ा या फिर रूमाल लेकर उसमें श्रीचक्र, नागकेशर व कमलगट्टा रख दें और उसको रक्षासूत्र से तीन गांठ लगाकर बांध दे तथा उसे अपने स्कूल बैग, स्टडी टेबल की दराज या फिर अलमारी में रख दें। ऐसा करने से आपके जीवन में आ रही ऐसी परेशानियों से निजात मिलेगी।

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