Govardhan puja|| कथा, पूजा विधि, महूर्त , राशि अनुसार भोग एवं सम्पूर्ण जानकारी ||Suresh Shrimali



                                        || गोवर्धन पूजा ||

20 अक्टूबर 2017‘‘यत्र योगेष्वर कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरतत्र श्री विजयो भूतिर ध्रूवा नितिर मतिर मम्।।‘‘जहां योगेष्वर श्रीकृष्ण है, वहां धनुर्धर अर्जुन होंगे और उसी जगह धन-समृद्धि, ऐष्वर्य और नीति का निवास होगा।दर्शकों, पंचपर्व का यह पर्व नजदीक आ चुका है। इस बार हमने धनत्रयोदशी, नरक चतुर्दशी एवं दीपावली की महानिशा रात्रि पर महालक्ष्मी शक्ति साधना की जानकारी आप सभी को दी और आज मैं आपको गोवर्धन पूजा जिसे मारवाड़ी भाषा में ‘‘रामश्यामा‘‘ भी कहा जाता है। उससे संबंधित जानकारी आपको बताऊंगा।मन को स्थिर करती है गोवर्धन पूजा दीपावली के अगले दिन प्रातःकाल गोवर्धन पूजा की जाती है। जब ना अंधेरा हो, ना ही सूर्य अपनी किरणें बिखेर चुका हो, उस समय करनी चाहिए गोवर्धन पूजा। जिनका मन स्थिर नहीं है, चित्त शांत नहीं है, हमेशा भटकाव रहता है, ऐसे लोगों के लिए यह त्यौहार अत्यंत महत्वपूर्ण है। भले ही आप मां लक्ष्मी की पूजा करके देर से सोए हो लेकिन गोवर्धन पूजा पूरी श्रद्धा के साथ करनी चाहिए।पहले यह जान लें कि गोवर्धन पूजा क्यों की जाती है? वर्षा ऋतु से पहले ब्रजवासी भगवान इन्द्र को खुश करने के लिए तरह-तरह के भोग और मिष्ठान उन्हें चढ़ाते थे लेकिन श्रीकृष्ण ने कहा कि यहां बारिश इन्द्र की वजह से नहीं गोवर्धन पर्वत की वजह होती है और इसी कारण हमें मिलकर गोवर्धन पर्वत की पूजा-अर्चना करनी चाहिए और उन्हें प्रसाद चढ़ाना चाहिए। इन्द्र ने जब ये सब कुछ होते हुए देखा तो उन्होंने ब्रज में अतिवृष्टि कर दी। इस भंयकर बरसात के प्रकोप से ब्रजवासियों को बचाने के लिए सुदर्शन चक्रधारी श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को तर्जनी अंगुली पर उठा लिया और सभी को इस पर्वत को नीचे शरण दी। अतः इन्द्र लज्जित हुए और श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। इसके बाद से ही प्रत्येक घर में दीपावली के अगले दिन प्रतिपदा को गोवर्धन पर्वत पूजने की प्रथा शुरू हुई। गो का एक अर्थ sense भी होता है और वर्धन का अर्थ बढ़ाना। यानि जो अपने senses को increase करना चाहता है। जिससे ही ब्वदबमदजतंजपवद  बढ़ता है और चित्त एकाग्र होता है। ब्रह्ममुहूर्त में  स्नान करने से पहले तेलाभ्यंग जरूर होना चाहिए। यानि शरीर पर तेल जरूर मले। गाय के गोबर द्वारा एक छोटा-सा पर्वत बनाए, यदि गोबर आसानी से उपलब्ध ना हो पाए तो थोड़ी-सी मिट्टी लेकर उसे गिला करके छोटे से पर्वत का स्वरूप देना चाहिए, जिसके ऊपर का भाग नुकीला हो। जिस पर घास और फूल-पत्तियां रखनी चाहिए। फिर विधि अनुसार कुमकुम चावल के द्वारा गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। गुड़ का भोग लगाएं और वो ही भोग प्रत्येक घर के सदस्य को बांटें। इसके बाद आस-पास की स्त्रियां मिलकर श्रीकृष्ण के कुछ भजन गाएं, उनकी स्तुति करें और उनकी भक्ति में खुद को समर्पित करें। यही इस दिवस का मुख्य महत्व सिद्ध होता है। पुरुषों को चाहिए कि गोवर्धन रूपी पर्वत के दर्शन के बाद किसी कृष्ण मंदिर जाएं और वहां बैठकर‘‘श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारी, हे! नाथ नारायण वासु देवा‘‘ का जाप करें। आप अगर इस भजन पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि इसके अर्थ की सार्थकता सिर्फ ईश्वर के नाम में है। प्रत्येक नाम का सुमिरन करते रहिए, ना जाने कौनसा नाम उस एकाकार से साक्षात्कार करवा दे। कहा भी गया है-   

                   ‘‘क से कर्म करो इति नामा                    मन राखों जहां कृपा निदाना‘‘


श्रीकृष्ण के ये नाम चित्त में शांति स्थापित करते है और मन को एकाग्र करते है। इसके बाद घर आकर पुरुषों को चाहिए कि अपने सिर पर पहले कुंमकुम और फिर उसके ऊपर चंदन से तिलक करें। आप कर्म शांति का अनुभव करेंगे।


दर्शकों, तर्क और वितर्क की संभावना प्रत्येक क्षण मौजूद रहती है। जब आप में से कुछ लोग सोच रहे होंगे कि ईश भजन कभी भी हो सकता है और किसी भी महीने की प्रतिपदा को सम्पन्न हो सकता है। लेकिन चित्त में स्थिरता इसी दिन क्यों आती है? मैंने आपको बताया कि जब आप गोवर्धन पर्वत बनाए तो उसका ऊपरी सिरा थोड़ा सा नुकीला हो, यानि एकमेव स्थिति। जब व्यक्ति सारे झंझट छोड़कर एकमेव स्थिति की तरफ प्रस्थान करता है तो मन बाधा रहित होकर Focused हो पाता है। इसलिए इस त्यौहार का अनूठा महत्व है।


अन्न-धन के भंडार भरता है अन्नकूट भोग


कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन सम्पन्न होता है गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव। एक स्थिति की तरफ आपको लेकर चलता हूं। कल्पना कीजिए उस व्यक्ति की, जिसके पास रूपया, पैसा, जमीन सब कुछ है लेकिन वहां बाढ़ आ गई। सब कुछ खरीदना मुमकिन है लेकिन संभव नहीं हो पा रहा। यहां तक कि घर से बाहर निकलना भी आपके हाथ में नहीं। यदि घर के बाहर है और चंद कदम की ही दूरी पर है तो घर भी नहीं जा पाते। मुम्बई की 26 जुलाई का वो मंजर कौन भूल सकता है। जब इन्द्र ने अतिवृष्टि शुरू की थी तो कौन तारणहार बना था? वही बंशीवाला। यहां बारिश तो एक उदाहरण मात्र है। कभी दुखों की अतिवृष्टि है तो कभी परेशानियों का माया जाल है। हर स्थिति में वो मुरली मनोहर हाथ थाम ले तो जीवन में कष्ट हो सकते है भला? कतई नहीं। जब वो गोवर्धन पर्वत उठा सकता है और असंख्य लोगों को शरणागत कर सकता है तो हमें क्यों नहीं। गोवर्धन पूजा के दिन ही अन्नकूट भोग ठाकुर जी को लगाया जाता है और उनसे यह प्रार्थना की जाती है कि इन 56 भोग की तरह ही हमारी जीवनरूपी थाली भी सुख के प्रत्येक स्वाद के साथ सजी रहे और आपकी कृपा बनी रहे। इस दिन के बाद अगले 15 दिनों तक अलग-अलग मंदिरों में वार के हिसाब से अन्नकूट का आयोजन करके प्रसाद वितरित किए जाते है।


लेकिन घरों में अन्नकूट भोग गोवर्धन पूजा के दिन ही लगाना चाहिए। तरह-तरह के व्यंजन बनाए, जिसमें मिठाई हो, सब्जियां हो, तरह-तरह से बने नमकीन पदार्थ हो, उन्हें अलग-अलग करके मंदिर के सामने सजाएं। जिस तरह नित्य-प्रतिदिन पूजा-अर्चना करते है, वैसे ही पूजा-अर्चना करें। फिर ठाकुर जी के भोग के पीछे बैठकर एक छोटे लाल कपड़े से उस पूरे दृश्य को ढक लें और ठाकुर जी को भोग लगाने दें। अब इसके बाद सारे पकवान किसी एक बर्तन में ले लेने चाहिए और फिर घर-परिवार के सदस्यों, गली-मौहल्ले में ये प्रसाद बांटें।


अब एक बात और यह तो रही अन्नकूट प्रसाद की बात। जिसमें 56 भोग होंगे। लेकिन कुछ भोग राशि अनुसार भी लगते है। जिससे भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है।


  मेष राशि वाले जातक पंचामृत का भोग लगाएं। वृषभ राशि वाले शहद का भोग। मिथुन राशि मक्खन, मिश्री का भोग। कर्क राशि दूध का भोग। पंजरी का भोग सिंह राशि वालों को। सुख मेवे का भोग कन्या राशि वालों के लिए है। मिश्री और दही के मिश्रण का भोग तुला राशि वाले लगाएं। सौंठ के लड्डू का भोग वृश्चिक राशि वालोें को लगाना चाहिए। धनु राशि वाले पेठे का भोग लगाएं। चावल की खीर का भोग मकर राशि वालों के लिए है।  मेवे की मिठाई का अर्पण कुंभ राशि के जातकों के लिए शुभ है। रबड़ी के मालपुए मीन राशि वालों के लिए है।


यदि इस तरह आपने श्री चरणों में भोग अर्पित किए तो समझिए किस्मत सिर्फ चमकेगी ही नहीं, दमकेगी भी।इस तरह राषि अनुसार भोग लगाकर आप अपनी मन चाही मुरादे पूरी करें और श्रीकुबेर महालक्ष्मी के साथ-साथ भगवान श्रीकृष्ण का भी आषीर्वाद प्राप्त करें। क्योंकि हमारी पूर्ण रूप से यहीं भावना होती है कि आप इन पांच दिनों में साधना करके सभी देवी-देवताओं का आषीर्वाद प्राप्त करें और अपनी किस्मत के बंद दरवाजों को खोले। बस कर्म आपको करना है और रास्ता बताना मेरा काम हैं।
इस दिन भगवान श्रीकृष्ण जो कि शेषशय्याधारी भगवान श्रीविष्णु का स्वरूप है। उनकी पूजा व आराधना का विशेष महत्व है। इसलिए इस दिन माँ लक्ष्मी के साथ-साथ विष्णु भगवान की पूजा का भी सर्वाधिक महत्व हमारे शास्त्रों में बताया गया है। क्योंकि माँ लक्ष्मी भगवान विष्णु की शक्ति है और यदि विष्णुजी शरीर है तो लक्ष्मीजी आत्मा है।


यदि श्रीविष्णु आकाश है तो लक्ष्मीजी पृथ्वी है। इसलिए लक्ष्मी और विष्णु दो शरीर और एक प्राण है।    वहीं महर्षि पाराशर के अनुसार यदि विष्णु न्याय है तो लक्ष्मी नीति है। यदि विष्णु शब्द है तो लक्ष्मी वाणी है। विष्णु यदि ज्ञान है तो लक्ष्मी बुद्धि है। यदि विष्णु धर्म है तो लक्ष्मी सद्कर्म है। विष्णु यदि संतोष है तो लक्ष्मी सदा संतुष्टा है और यदि भगवान विष्णु काम है तो लक्ष्मीजी इच्छा है। इसी प्रकार यदि विष्णु यज्ञ है तो लक्ष्मीजी यज्ञशाला है। विष्णु जी यदि कुशा है तो लक्ष्मीजी समिधा है और यदि विष्णु सूर्य है तो लक्ष्मीजी उनकी प्रभा है। यदि विष्णु दीपक है तो लक्ष्मी जी उसकी ज्योति है।


अर्थात् इन सब बातों से स्पष्ट होता है कि मां लक्ष्मी और श्रीविष्णु दो शरीर होने के बावजूद कर्म और आत्मा से एक ही स्वरूप है।जैसाकि हम सभी जानते है कि लक्ष्मी चंचला है और वह एक जगह नहीं रह सकती। इसलिए हम देखते है कि लक्ष्मी आती है और किसी न किसी रूप में वह वापस चली भी जाती है परन्तु स्थिर नहीं रहती। इसलिए लक्ष्मी का स्थाईवास कैसे हो यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है?


हर एक मनुष्य की यह कामना होती है कि वह धन कमाए और वह धन किसी न किसी शुभ कार्य खर्च होता रहे जैसे अपना घर बनाना, नये गहनें, गाड़ी खरीदना या फिर कोई न कोई मांगलिक, धार्मिक व शुभ कार्य करना जिससे मानसिक शांति भी मिले तथा आर्थिक रूप से भी सम्पन्नता बढ़ती रहे परन्तु आज के इस परिवेश में मध्यम वर्गीय मनुष्य के लिए क्या यह चीज संभव है? क्या कुछ ऐसा है जो हमें आर्थिक के साथ-साथ मानसिक, धार्मिक व शारीरिक संतुष्टता भी प्रदान करें?


तो दर्शकों, इस वर्ष गोवर्धन पूजा के इस विशेष अवसर पर आपको एक छोटा-सा प्रयोग सम्पन्न करना है जिससे लक्ष्मी आपके यहां दौड़ी चली आएगी। यह प्रयोग सभी स्त्री वर्ग को सम्पन्न करना है। क्योंकि स्त्रियां स्वयं लक्ष्मी का स्वरूप मानी गई है। इसलिए इन्हें गृहलक्ष्मी शब्द से भी उद्बोधित किया जाता है। क्योंकि वह साक्षात् माँ लक्ष्मी का स्वरूप होती है।छोटा-सा करें यह उपाय और मां लक्ष्मी को अपने घर बुलाएंइसके लिए आप गोवर्धन पूजा के दिन अर्थात् 20 अक्टूबर के दिन प्रातःकाल 05 बजकर 12 मिनट से 06 बजकर 42 मिनट के मध्य यह पूजा सम्पन्न करें।


सर्वप्रथम अपने घर में झाड़ू लगाएं वह भी अन्दर से लेकर बाहर की ओर जिससे घर के सभी दरिद्रता व अशुभ बाहर निकल जाएं। झाड़ू निकल जाने के पश्चात् घर के बाहर से आपको थाली बजाते-बजाते घर में प्रवेश करना है। कुछ इस तरह भाव करें जिस तरह आप माँ लक्ष्मी आपके घर पधार रही है। फिर स्नानादि से निवृत होकर शुद्ध लाल साड़ी पहन लें। साथ ही सभी तरह के सोलह श्रंृगारों को करके सुन्दर आभूषण धारण करके लक्ष्मी की तरह तैयार हो जाएं। फिर गोबर या मिट्टी लेकर घर के मुख्य द्वार के चैखट पर पाल बनाकर उन्हें गोवर्धन स्वरूप मानकर उनकी पूजा-अर्चना करें। केसर, कुंकुंम का तिलक करें, अक्षत चढ़ाएं, पुष्प चढ़ाएं व नैवेद्य स्वरूप कोई भी प्रसाद भोग लगाएं। फिर हाथ जोड़कर प्रार्थना करें कि हमारे घर में सदैव माँ लक्ष्मी का वास बना रहे व उनकी कृपा दृष्टि और आशीर्वाद हमेशा बना रहे।


Comments