महाशिवरात्रि व्रत का महत्व और रात्रि में पूजा क्यों || Suresh Shrimali



महाशिवरात्रि व्रत का महत्व 
और
रात्रि में पूजा क्यों 



ज्योतिष की दृष्टि से महाशिवरात्रि की रात्रि का बड़ा महत्व है। भगवान शिव के सिर पर चन्द्रमा सुशोभित है यानि विराजमान है। चन्द्रमा को मन और मस्तिष्क का कारक कहा गया है। कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात में चन्द्रमा की शक्ति लगभग पूरी तरह क्षीण हो जाती है। जिससे तामसिक शक्तियां व्यक्ति के मन पर अधिकार करने लगती हैं जिससे पाप प्रभाव बढ़ जाता है। भगवान शंकर की पूजा से मानसिक बल प्राप्त होता है, जिससे आसुरी और तामसिक शक्तियों के प्रभाव से बचाव होता है। रात्रि से शंकर जी का विशेष स्नेह होने का एक कारण यह भी माना जाता है कि भगवान शंकर संहारकर्ता होने के कारण तमोगुण के स्वामी हैं। रात्रि भी जीवों की चेतना को छीन लेती है और जीव निद्रा देवी की गोद में सोने चला जा जाता है। इसलिए रात को तमोगुणमयी कहा गया है। यही कारण है कि तमोगुण के स्वामी देवता भगवान शंकर की पूजा रात्रि में विशेष फलदायी मानी जाती है।

जो श्रद्धालु मासिक शिवरात्रि का व्रत करना चाहते है, वह इसे महाशिवरात्रि से आरम्भ कर सकते हैं और एक साल तक कायम रख सकते हैं। यह माना जाता है कि मासिक शिवरात्रि के व्रत को करने से भगवान शिव की कृपा द्वारा कोई भी मुश्किल और असम्भव कार्य पूरे किए जा सकते हैं। अविवाहित महिलाएं इस व्रत को विवाहित होने हेतु एवं विवाहित महिलाएं अपने विवाहित जीवन में सुख और शान्ति बनाए रखने के लिए इस व्रत को करती है।

महाशिवरात्रि की रात्रि पर की जाने वाली पूजा के लिए सामग्री

पूजा के लिए आपको चाहिए सुगंधित पुष्प, बिल्वपत्र, आक धतूरा, भाँग, बेर, आम्र मंजरी, जौ की बालें, मंदार पुष्प, गाय का कच्चा दूध, गन्ने का रस, दही, शुद्ध देशी घी, शहद, गंगा जल, पवित्र जल, कर्पूर, धूप, दीप, रूई, चंदन, पंच फल, पंच मेवा, इत्र, गंध रोली, मौली जनेऊ, पंच मिष्ठान्न, शिव व माँ पार्वती की श्रृंगार की सामग्री, वस्त्राभूषण रत्न, सोना, चाँदी, दक्षिणा, पूजा के बर्तन, कुश का आसन। 


महाशिवरात्रिः चार प्रहर की पूजा के चार महामंत्र कौन से हैं 

शिवपुराण के अनुसार व्रत करने वाले को महाशिवरात्रि के दिन प्रातःकाल स्नान व नित्यकर्म से निवृत्त होकर ललाट पर भस्म या चंदन का त्रिपुण्ड तिलक और गले में रुद्राक्ष की माला धारण कर शिवालय में जाना चाहिए और शिवलिंग का विधिपूर्वक पूजन एवं भगवान शिव को प्रणाम करना चाहिए। फिर उसे श्रद्धापूर्वक महाशिवरात्रि व्रत का संकल्प करना चाहिए। जो लोग महाशिवरात्रि को पूरी रात पूजा करते है उन्हें 

प्रथम प्रहर की पूजा में अपनी मनोकामना का संकल्प करके दूध से अभिषेक करते हुए ‘‘ऊँ हृीं ईशानाय नमः’’ का जाप करना चाहिए। प्रथम प्रहर की पूजा का समय 6ः25 से 9ः25 बजे तक रहेगा। 

द्वितीय प्रहर में दही से अभिषेक करते हुए ‘‘ऊँ हृी अघोराय नमः’’ मंत्र का जाप करना चाहिए। द्वितीय प्रहर की पूजा का समय 9ः25 से 12ः46 बजे तक रहेगा। 

तृतीय प्रहर में घृत यानि घी से अभिषेक करते हुए ‘‘ऊँ हृी वामदेवाय नमः’’ मंत्र का जाप करना चाहिए। तृतीय प्रहर की पूजा का समय 12ः46 से 03ः00 बजे तक रहेगा।

चतुर्थ प्रहर में मधु यानि शहद से अभिषेक करते हुए ‘‘ऊँ हृी सध्योजाताय नमः’’ मंत्र का जाप करना चाहिए। चतुर्थ प्रहर की पूजा का समय 03ः00 से 05ः00 बजे तक रहेगा।

बात प्रयोग की करें तो हर इंसान के मन में कोई ना कोई कामना होती है। आप की जो भी कामना हो, महाशिवरात्रि पर यह प्रयोग आपकी कामना की पूर्ति करेगा। मनोकामना पूर्ति के लिए जो साधना सामग्री चाहिए पहले वह नोट कर लें। प्राणप्रतिष्ठायुक्त अभिमंत्रित पारद षिवलिंग, 11 बिल्व पत्र, अष्टगंध, अनार की कलम एवं हल्दी व अष्टगंध से पीले किये हुए चावल। 

यह प्रयोग आपको महाशिवरात्रि यानि 13 फरवरी से 23 फरवरी तक 11 दिन तक लगातार करना है। इस प्रयोग को सम्पन्न करने के लिए आपको रोजाना 11 बिल्व पत्र प्राप्त करने होंगे। बिल्व पत्र टूटे हुए नहीं होने चाहिए। सर्वप्रथम आप महाषिवरात्रि की रात्रि को कांसे या स्टील की थाली लें। उसमें हल्दी से पीले किए हुए चावल से ऊँ का चिन्ह बनायें। ऊँ के चिन्ह के ऊपर प्राणप्रतिष्ठायुक्त अभिमंत्रित पारद षिवलिंग को स्थापित करें। फिर आप एक बिल्व पत्र को लें उस पर अष्टगंध या हल्दी में थोड़ा गंगाजल मिश्रित कर स्याही बना लें व अनार की कलम से मंत्र लिख दें। ध्यान रखें की मंत्र पूरा तीनों पत्तों पर आ जाएं। फिर आप बिल्व पत्र पर लिखे हुए मंत्र को 11 बार पढ़कर षिवलिंग पर चढ़ाएं। बिल्व पत्र का चिकना भाग हमेषा षिवलिंग की ओर चढ़ेगा फिर आप दूसरा बिल्व पत्र लें उस पर भी आप मंत्र लिखकर, मंत्र को 11 बार पढ़कर षिवलिंग पर चढ़ा दें। ऐसा आपको 11 बिल्व पत्र लेकर 11 बार मंत्र पढ़कर षिवलिंग पर चढ़ाने है। मंत्र:- 


ऊँ त्रिदलं त्रिगुणाकारम त्रिनेत्रम च त्रिधायुतम्।

त्रिजन्म पाप संहारम एक बिल्व शिवार्पणम।।


11 बिल्व पत्र चढ़ाने के बाद भगवान षिव को प्रणाम कर, अपनी जो भी मनोकामना है उसका स्मरण करे और पूर्ण हो ऐसी प्रार्थना करें। जब आप दूसरे दिन यह प्रयोग करें तो पहले दिन वाले सभी बिल्व पत्रों को किसी भी बर्तन में डालकर अलग रख दें। ऐसा करने पर आपके 11 दिन के 121 बिल्व पत्र इकट्टे हो जाएंगे। फिर आप 12वें दिन उन सभी बिल्व पत्रों में से एक बिल्व पत्र निकाल कर उस बिल्व पत्र की डण्डी को तोड़ दें और बिल्व पत्र को फोल्ड करके किसी ताबीज में डालकर उसे बंद करके अपने गले में धारण कर लें अगर परिवार के बाकी सदस्य भी पहनना चाहे, तो उतने बिल्व पत्र लेकर ताबीज में डाल दें, इसके पश्चात् आप बाकी बचे हुए बिल्व पत्रों को किसी बर्तन में लेकर उसमें आटा व पानी डाल दें और उसे अच्छी तरह गूंथ लें। अब उस आटे की छोटी-छोटी गोलियां बना लें। तत्पश्चात् 12वें, 13वें या 14वें दिन आप उन गोलियों को किसी तालाब में प्रातः या संध्याकाल में मछलियों को डाल दें।




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