Shradh Paksha-2018 || पितृो के साथ साथ कभी पैतृक गाॅंव को मत भूलना ...वर्ना मेरी तरह आपको भी होगा नुकसान। || Suresh Shrimali

पितृो के साथ साथ कभी पैतृक गाॅंव को मत भूलना
 ...वर्ना मेरी तरह आपको भी होगा नुकसान


मेरा जन्म जोधपुर से 38 किलोमिटर दूर लूणी गाॅंव में हुआ था। गाॅंवों के लोग आज भी बहोत धार्मिक और रिती रिवाजों को सही तरीके से फाॅलो करते हैं। में जो घटना आपको बताने जा रहा हूं दरअसल ये आज से 24 वर्ष पूर्व की है। लेकिन ये मेरे मन और मस्तिष्क में उसी तरह है जैसे कल की ही घटना हो। 
ये बात उन दिनों की है जब हम पैतिृक गाॅंव को छोड जोधपुर आ गये थे। लेकिन पैतृक गाॅंव के घर में नित्य पूजा व साफ सफाई का जिम्मा पडौस में रहने वाले रिश्तेदार को सौंप रखा था। आप भी ध्यान रखें कि अगर आपका कोई पैतृक गाॅंव में है और वो सिर्फ होली दिवाली आपके जाने पर ही खुलता और साफ सफाई होती है तो यह भी एक प्रकार का दोष है। 
एक रोज श्राद्ध का दिन था और मेरी माताजी का आदेश था कि में गाॅंव जाकर सभी रिश्तेदारों और मिलने वालों को भोजन का न्यौता देकर आउं। 
मेने सभी को न्यौता दे दिया परन्तु अपने पैतृक घर जाना और पितृो को न्यौता देना ही भूल गया। और उसका परिणाम मुझे तुरन्त रास्ते में एक भीषण ऐक्सीडेंट के रूप में मिला हाथ पैर में चोट लगने के कारण में समझ गया था कि मेरी गलती ना होने पर भी मेरा किसी और के रोंग साइड में गाडी चलाने से ऐक्सीडेंट के पीछे कोई मकसद तो जरूर होगा। घर जाकर मेने पूरी बात पिताश्री को बताई तो उन्होंने इस बात को एक आम चोट जो किसी को भी लग सकती है सोचकर अनदेखा कर दिया। और रात में सब सो गये। लेकिन पिताजी को रात को 2 बजे इस बात का आभास हुआ कि कुछ तो गडबढ है। मुझे रात को उठाकर पूछा कि क्या तुम गाॅंव में अपने पैतृक घर में जाकर पितृो को हाथ जोडकर आए थे। मेने कहा नहीं मुझे याद नहीं रहा। 
पिताजी उसी वक्त नहा और पूजा कर सुबह 5 बजे मुझे लेकर गाॅव रवाना हो गये और मुझ से विधीवत पितृो से क्षमा बुलवाकर और उन्हें श्राद्ध में भोजन कर आशीर्वाद देने का न्यौता देकर हम घर आए। और उसके बाद मेरा नीयम ही बन गया कि गाॅंव में जाकर हमेशा पितृो का आशर्वाद तो लेना ही है। 

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