Ganesh Chaturthi 2018 | राशि अनुसार करें श्री गणेश को प्रसन्न | Suresh Shrimali

राशि अनुसार करें श्री गणेश को प्रसन्न

श्री गणेश ज्योतिष विज्ञान के भी अधिपति देवता हैं। यदि आप कई तरह के पूजा-पाठ, अनुष्ठान, यज्ञादि सम्पन्न कर चुके है और उसका परिणाम आपको नहीं मिला या फिर सभी ग्रहों की आराधना करके आप थक चुके हैं तो इसका सर्वश्रेष्ठ उपाय है श्री गणेश वन्दना। जिनकी पूजा-अर्चना करने से आपके नवग्रहों के सभी दोष समाप्त हो जाएंगे। यदि आपकी कुण्डली के 12 भावों में ग्रहों का दोष है तो वह भी दूर हो जाएगा। इसके लिए आपको अपनी राशि अनुसाार श्री गणेश की वन्दना करनी है, जानिए कैसे-   
    
मेष व वृश्चिकः- राशि वाले जातक सिन्दूरी रंग की प्रतिमा घर में विराजमान करें व लाल या सिन्दूरी रंग के वस्त्र प्रतिमा को धारण करवाएं। प्रसाद के रूप में बून्दी के लड्डू, अनार, लाल गुलाब के पुष्प अर्पित करें। साथ ही प्रतिदिन “ऊँ गं गणपतये नमः” मंत्र का जाप करते हुए 21 दूर्वा चढ़ाएं। 

वृषभ व तुलाः- राशि वाले जातक गणेश जी को श्वेत वस्त्र धारण करवाएं। साथ ही उन्हें मोदक का भोग लगाए, सफेद रंग के पुष्प व इत्र चढ़ाएं तथा गणेश चालीसा का पाठ करें। 

मिथुन व कन्याः- राशि वाले जातक गणेश जी को हरे वस्त्र धारण करवाएं। साथ ही पान, हरी ईलायची, पालक, दूर्वा, हरे मूंग चढ़ाए व सूखे मेवों का भोग लगाए तथा गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ विशेष लाभदायक हैं। 

कर्कः- राशि वाले जातक गणेश जी को गुलाबी रंग के वस्त्र पहनाए। साथ ही चावल से बनी खीर का भोग लगाए व गुलाब के पुष्प चढ़ाए। गायत्री गणेश मंत्र का जाप करें। 

एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।

सिंहः- राशि वाले जातक लाल रंग के वस्त्र गणेश जी को धारण करवाएं। साथ ही गुड़ या गुड़ से निर्मित हलवे का भोग लगाए। कनेर के पुष्प अर्पित करें और संकट नाशक गणेश स्तोत्र का पाठ करें।

धनु व मीनः- राशि वाले जातक गणेश जी को पीले वस्त्र धारण करवाए। साथ ही पीले पुष्प, पीले रंग का मिष्ठान, बेसन के लड्डू व केले का भोग लगाए तथा गणेश जी के बीज मंत्र का जाप करें। 

ऊँ गं गणपतये नमः।।

मकर व कुंभः- राशि वाले जातक गणेश जी को नीले रंग के वस्त्र धारण करवाए। साथ ही मावे के प्रसाद का भोग लगाएं, आक् के पत्ते चढ़ाए, सफेद पुष्प व चमेली के तेल में सिन्दूर मिलाकर उन्हें चढ़ाएं तथा “श्री गणेशाय नमः” मंत्र का जाप करें।

“अष्टसिद्धि दायक श्रीगणपति साधना”

गणेश चतुर्थी महोत्सव के शुभ समय में हमें अपनी समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने का प्रयत्न करके श्री गणेश को प्रसन्न करने की हर मुमकिन कौषिष करनी चाहिये साथ ही प्रभावी प्रयोग और साधनाएं भी करनी चाहिये। 
जब आपसे लक्ष्मी रूठने लगी हो, आपका व्यापार या कारोबार बंद होने लगे, रोगों से त्रस्त होकर जीवन से आप निराश होने लगे हो या कर्ज के बोझ से दबते चले जा रहे हों या जीवन के किसी भी क्षेत्र में असफल होने लगे हों तो आपके लिए अष्टसिद्धि दायक श्रीगणपति साधना रामबाण सिद्ध हो सकती है। 
अब मैं आपको यह विषेष साधना बताने जा रहा हूं जिसे सम्पन्न करने के लिए आपको चाहिए होगा-

साधना सामग्रीः- मंत्रसिद्ध अष्टसिद्धि दायक गणपति सुपारी, अष्टसिद्धि दायक वन्दरमाला, हकीक पत्थर, भोजपत्र, अष्टगंध, अनार की कलम एवं माला।

साधना विधानः- गणेश चतुर्थी के दिन प्रातःकाल स्नानादि से निवृत होकर पुरूष सफेद वस्त्र व स्त्रियां लाल वस्त्र धारण कर पूजा स्थान पर स्वच्छ आसन पर विराजमान हो जाएं। फिर घी का दीपक प्रज्जवलित कर प्रार्थना करें कि हे गणपति देव आप समस्त विघ्नों का नाश करके प्रबल विपत्ति के समय में विघ्नहत्र्ता रूपी सूर्य के प्रकाश से सभी दसों दिशाएं प्रकाशित कर देते है और समस्त विद्याओं एवं वैभव के अधीश्वर देवता है, हे गणपति देव आप अपना स्थान ग्रहण करें। 

फिर हाथ में अक्षत लेकर प्रथम पूज्य श्री गणपति का आवाहन करें- 
“ऊँ गणनांत्वा गणपति घूं हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति घूं हवामहे निधीनां त्वा निधिपति घूं हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्।।”

हाथ के अक्षत गणेश जी को समर्पित करके हाथ जोड़कर प्रार्थना करें -
“गजाननं भूत गणाधिसेवितं कपित्थ जम्बूफल चारू भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाश कारकं नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्।।”

ऐसी प्रार्थना करने के पश्चात् अपने सामने एक लाल वस्त्र बिछाकर उस पर चार कोनों में चावल की ढेरी बनाएं तथा उन ढेरियों पर चार गणपति स्वरूप सुपारी स्थापित करें। यह चार ढेरियां गणपति के 4 सेवक-गणप, गालव, मुद्गल और सुधाकर के प्रतीक हैं। फिर उसी लाल वस्त्र पर हरे मूंग की 12 ढेरियां बनाकर उन पर हकीक पत्थर स्थापित करें। यह 12 ढेरियां गणपति के 12 स्वरूप-सुमुख, एकदन्त, कपिल, गजकर्ण, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशक, विनायक, धु्रमकेतु गणाध्यक्ष, भालचन्द्र, गजानन्द के प्रतीक है। इसके बाद इन सब के मध्य में लाल मूसर की ढेरी बनाकर उस पर गणपति सुपारी स्थापित कर गणपति सुपारी के आगे अष्टसिद्धि दायक वन्दरमाला विराजमान कर दें। 
इन सबकी स्थापना के बाद आप एक शुद्ध चांदी या स्टील की थाली लेकर उसमें अष्टगंध द्वारा स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं। फिर उस पर अभिमंत्रित भोजपत्र रख दें। फिर आप भोजपत्र पर अनार की कलम से अष्टगंध द्वारा अपनी मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना अष्टसिद्धि दायक श्री गणपति से करें व भोजपत्र पर अपनी प्रार्थना लिख दें और भोजपत्र को गणपति सुपारी के पास रख दें। 
फिर सभी पर केसर का तिलक करें, अक्षत चढ़ाएं, कनेर के पुष्प चढ़ाएं, दूर्वा चढ़ाएं, लौंग एवं ईलायची निर्मित पान चढ़ाएं, अबीर एवं गुलाल चढ़ाएं, नैवेद्य के रूप में मोदक के लडडू चढ़ाएं। तत्पश्चात श्री गणेश माला से “ऊँ गं गणपतये नमः” मंत्र का जाप 11 माला करें। मंत्र जाप पूर्ण होने के पश्चात् आपको श्री गणेश जी का संकट नाशक गणेश स्तोत्र का पाठ सम्पन्न करना है। क्योंकि इस पाठ में बड़ी ही शक्ति समाई हुई है और इसके लिए गणेश जी ने स्वयं कहा है कि इस स्तोत्र का 21 बार पाठ करने से विद्यार्थी विद्या को, पुत्रार्थी पुत्र को तथा कामर्थी समस्त मनोवांछित कामना को प्राप्त कर लेता है। इसलिए जो मनुष्य भक्ति सहित इस स्त्रोत का पाठ करता है, वह गजानन्द का परम भक्त हो जाता है। 
पूजा समाप्ति के पश्चात् दोनों हाथ फैलाकर गजानन्द से अपने घर के समस्त कष्टों का नाश करके आपके घर में सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य, धन-सम्पदा की वर्षा की प्रार्थना करें तथा पूजा में किसी भी तरह की त्रुटि होने के लिए उनसे क्षमायाचना करें। फिर नैवेद्य घर के सभी सदस्य ग्रहण करें तथा पूरे परिवार के साथ बैठकर भोजन करें। ऐसा आपको चतुर्थी तिथि से चर्तुदशी तिथि तक करते रहना है। क्योंकि इन दस दिनों के लिए गजानन्द श्री गणेश आपके घर में पधारते है। इसलिए उन्हें प्रसन्न करके उनका आशीर्वाद ग्रहण करने के लिए परिवार के सभी सदस्यगण उनका स्वागत करें। साथ ही यदि आप चाहे तो अपने मित्रों, बहनों व घर की बेटियों को भी भोजन के लिए बुलाएं तथा हर दिन तरह-तरह के भोग लगाकर भगवान गणपति का पूजन करें। साथ ही घर की बहन-बेटियों व बहुओं को यथोचित भेंट दें। 
चतुर्थी के दिन पूजा व स्थापना पूर्ण विधि अनुसार करने के पश्चात पूजन सामग्री यथास्थिति रहने दें तथा पंचमी से लेकर चर्तुदशी तक आपको सभी सामग्री पर पूजन करना है तथा मंत्र जाप करने के साथ-साथ श्रीसंकट नाशक गणेश स्तोत्र का पाठ करना है। 
चर्तुदशी के दिन पूजा सम्पन्न करने के पश्चात् अष्टसिद्धि दायक गणपति सुपारी व माला को घर के मंदिर में विराजमान कर दें, अष्टसिद्धि दायक वन्दरमाला को घर के मुख्य द्वार पर लगा दें, बाजोट पर रखी हुई सभी सुपारियां, हकीक पत्थर व इच्छा पूर्तिकारक भोजपत्र को लाल वस्त्र लेकर तीन गांठ लगाकर पोटली का रूप दें एवं इस पोटली को तिजोरी या किसी शुद्ध स्थान पर रखें व आगामी गणेश चतुर्थी वाले दिन इस पोटली को जल में प्रवाहित करें। सभी अनाज पक्षियों को डाल दें।

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