क्यों मनाना चाहिए श्राद्ध, श्राद्ध के पीछे क्या महत्व है, श्राद्ध कब | Suresh Shrimali

कब और क्यों मनाना चाहिए श्राद्ध 
जानिए क्या है महत्व 

 खुशियों से भरे त्यौहार नवरात्रा, विजयदशमी और फिर पंच दीवसीय महापर्व दीपावली प्रारंभ हो उससे पहले आइये हम अपने उन पूर्वजों, परिवार के उन बुजुर्गों, जो अब इस दुनिया में नहीं है, उनको श्रद्धा के साथ स्मरण करें, नमन करें, उन्हें तृप्त और संतुष्ट करें।
आप जरा गौर से सोचें हमारे माता पिता, दादा दादी या यों कहें कि सभी बढे बुजुर्गों ने हमें अंगुली पकड चलना सिखाया, पढाया-लिखाया, हमारे विवाह जैसे संस्कारों को विधिवत पूरा किया, हर सुख-सुविधा को दिया या देने का पूर्ण प्रयास किया। आज हम जिस कार या वाहन में घूम रहे हैं, जिस मकान में रह रहे हैं, उनके अथक प्रयासों से बनाई दुकान, आॅफिस या फैक्ट्री से हम अपनी आजीविका चला रहे हैं, हमारी पत्नी पूर्वजों के दिये गये गहनों का प्रयोग कर रही हैं। क्या उनकी मृत्यु के बाद हम उन्हें भूल जाएं। कत्तई नहीं।
में आज से आपको श्राद्ध पक्ष, पितृ पक्ष, पितृ दोष से जुडि हर वो जानकारी दूंगा जो आपके लिए जानना और बाद में मानना आवश्यक है। इसलिए कोशीश करें कि सभी विडियो को ध्यान से व पूरा देखने का प्रयास करें।
अश्विन माह के कृष्ण पक्ष में आने वाले श्राद्ध पर्व का यही संदेश है। इस बार 24 सितम्बर से श्राद्ध पक्ष प्रारंभ हो रहा है जो 8 अक्टूबर को सर्व पितृ अमावस्या को सम्पन्न हो जाएंगे। पन्द्रह दिन श्राद्ध पक्ष अथवा महालय पक्ष कहलाते हैं। श्राद्ध याने श्रद्धया यत् क्रियते तत् अर्थात् श्रद्धा से जो अंजलि दी जाती है उसे श्राद्ध कहते है। श्राद्ध कर्म भावना प्रधान कर्म नहीं है बल्कि यह क्रिया प्रधान कर्म है। आपकी भावना कितनी भी अच्छी क्यों ना हो लेकिन अगर आप श्राद्ध पक्ष में पूर्ण क्रिया यानी प्रोसेस को पूरा नहीं करते हैं तो इसका कोई लाभ नहीं है। श्राद्ध पक्ष में पितृों को श्रद्धा से स्मरण करना चाहिए और वे जिस योनि में हो उस योनि में उन्हें दुःख न हो, सुख और शांति प्राप्त हो, इसलिए पिंडदान और तर्पण करना चाहिए। इसलिए अपने मृत पितृगण के उद्ेश्य से श्रद्धापूर्वक किये जाने वाले कर्म विशेष को श्राद्ध शब्द के नाम से जाना जाता है।
हमारे माता-पिता एवं परिवार के अन्य बुजुर्ग लोग जिनका स्वर्गलोक गमन हो चुका है, उनको मोक्ष प्रदान करने, उनकी सद्गति और तृप्ती के लिए ब्राह्मणों को विधिपूर्वक कराया गया भोजन व दान-दक्षिणा ही श्राद्ध है। श्राद्ध कर्म करना हमारा कत्र्तव्य भी है और ऋण उतारने का अवसर भी। शास्त्रों में मुख्यतः हम मनुष्यों के लिए तीन ऋण कहे गए है। देव ऋण, ऋषि ऋण तथा पितृ ऋण इनमें से पितृ ऋण को श्राद्ध करके उतारना आवश्यक है।
यहाॅं एक बात को स्पष्ट कर दूं कि अपने पूर्वजों की मृत्यु तिथि को पहले से ही जान लें और ज्ञात नहीं है तो उनकी इंगिलिश डेट अपने स्थानिय पंडित जी को देकर तिथि निकलवा सकते हैं। और उस दिन विविधवत तर्पण की विधी को करना चाहिए। जो कि आपको आगे के विडियोज में देखने को मिलेगी सम्पूर्ण विधि।
अगर हम पितृ ऋण से मुक्त न हुए तो कई प्रकार के कष्ट हो सकते है। वर्ष में एक बार यानी उनकी मृत्यु तिथि पर विधि-विधान युक्त श्राद्ध करने से यह ऋण उतर जाता है। हम कोई भी कार्य प्रारंभ करने से पहले माता-पिता और परिवार के बुजुर्गों से आशीर्वाद लेते हैं, उनके चरण स्पर्श करते हैं। तो वैैसे ही आज से आप जब किसी खास काम से बाहर जाएं या कोई शुभ कार्य करें तो एक बार पूर्वजों का नमन करके कार्य की शुरूआत करें। फिर देखिए कार्य में कैसे सफलता मिलती है।

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