Shradh Paksha-2018 || कुंडली में कैसे जानें पितृ दोष है? || Suresh Shrimali


कुंडली में कैसे जानें
पितृ दोष


मैंने कहा था पितृ दोष कैसे जानें? तो इसका उत्तर ज्योतिष शास्त्र में मिलता है। फलित ज्योतिष में बताया गया है कि जिस किसी व्यक्ति के पितृ नाराज, रूष्ट हो जाते हैं तो वे कई प्रकार से उसका अमंगल करते हैं। इसमें पितृ श्राप, मातृ श्राप आदि के रूप में पितृ दोषों का विस्तृत विवरण है। उनसे संबंधित ग्रह योग भी बताए गए हैं। अगर पितृ पक्ष नाराज है तो यह जन्मपत्रिका से जाना जा सकता है कि किन कारणों से पितृ दोष है। जन्म कुंडली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम, दशम भावों में से किसी भी एक भाव पर सूर्य-राहु या सूर्य-शनि का योग हो तो जातक को पितृ दोष होता है। कुंडली के जिस भाव में ऐसा योग होता है उसके ही अशुभ फल घटित होते हैं। उदाहरण के तौर पर प्रथम भाव में सूर्य-राहु या राहु-शनि आदि अशुभ योग हो तो निश्चय समझिये कि वह व्यक्ति अशंात, गुप्त चिंता, दाम्पत्य विवाद तथा स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से घिरा रहेगा। दूसरे भाव में यही योग बने तो परिवार में वैमनस्य तथा आर्थिक उलझने पैदा होगी। चतुर्थ भाव में पितृ योग के कारण ही मकान, जमीन, माता-पिता, गृह सुख में कष्ट अथवा कमी हो सकती है। पंचम भाव में उच्च शिक्षा में विघ्न, संतान सुख में कमी, रोग आदि हो सकते हैं। सप्तम में यही योग वैवाहिक सुख में नवम में भाग्योन्नति में बाधाएं तथा दशम भाव में पितृदोष हो तो कार्य व्यवसाय, नौकरी संबंधी परेशानियां सामने आएंगी। प्रत्येक भावानुसार उसके फलों का विचार होता है। मान लीजिए यदि सूर्य नीच में होकर राहु अथवा शनि के साथ बैठा है तो पितृ दोष अधिक होता है। दशम भाव का स्वामी छठे, आंठवें या बारहवे भाव में हो, इसका राहु से दृष्टि या योग आदि का संबंध हो तो पितृ दोष होता है। अगर आंठवें अथवा बारहवें भाव में गुरू-राहु का योग, पंचम भाव में सूर्य-शनि अथवा मंगल आदि क्रूर ग्रहों की स्थिति हो तो पितृ दोष के कारण संतान कष्ट अथवा संतान सुख में कमी होना निश्चित है। अगर पंचमेश संतानकारक ग्रह राहु के साथ त्रिक भाव में स्थित हो तथा पंचम में शनि आदि क्रूर ग्रह हो तो संतान सुख उपलब्ध नहीं होता। राहु अथवा शनि के साथ मिलने से अनेक कष्टकारी योग बनते हैं जो पितृ दोष की भांति ही अशुभ फल प्रदान करते हैं। 

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