क्यों करें श्राद्ध ?
..ताकि मिले पितृ ऋण से मुक्ति
ऋण, कर्ज या उधार। इन शब्दों से सभी परिचित हैं। आमतौर पर किसी से धन अथवा कोई वस्तु कुछ समय के लिए मांगी जाएं और समय आने पर पुनः लौटा दी जाए, इसे ही ऋण, कर्ज अथवा उधार कहते हैं। संसार में प्रायः हर किसी को ऋण की आवश्यकता जीवन में कभी न कभी पड़ जाती है। लेकिन धन अथवा वस्तु के अलावा भी ऋण होते हैं, जिन्हें आप किसी से मांगते भी नहीं, फिर भी हो जाते हैं। जिस प्रकार उधार मांगा गया धन अथवा वस्तु लौटाना अनिवार्य होता है, तभी आप ऋण मुक्त होते हैं ठीक उसी प्रकार आपको तीन ऐसे ऋण भी चुकाने होते हैं जो आपने मांगे अथवा लिए नहीं, लेकिन फिर भी आप पर ये ऋण बने रहते हैं। कौन से हैं ये ऋण? हमारे पुराण और शास्त्र कहते हैं ये तीन ऋण हैं:- देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण। पितृ-ऋण से मुक्त होने की क्रिया ही श्राद्ध है। लेकिन श्राद्ध तभी फलदायी है, जब वह श्रद्धा के साथ किया जाए। पितृ ऋण को श्राद्ध करके उतारना आवश्यक है। जिन माता-पिता ने जातक की आयु, आरोग्यता, शिक्षा, विवाह, सुख-सौभाग्य आदि की अभिवृद्धि के लिए कई जतन किए हमें उनके ऋण से मुक्त होने के लिए श्राद्ध-कर्म पूर्ण श्रद्धा के साथ करना होता है। श्राद्ध-कर्म न करने, पितृ-ऋण से मुक्त न होने पर कई प्रकार के कष्ट हो सकते है। इसीलिए वर्ष में एक बार यानी उनकी मृत्यु तिथि पर विधि-विधान युक्त श्राद्ध करने से यह ऋण उतर जाता है। यह अवसर होता है अश्विन माह के कृष्ण पक्ष का। ऐसी मान्यता रही है कि इस अवधि में यमराज यमपुरी से पितृो को मुक्त कर देते है तब वे अपनी संतानों तथा वंशजों से पिण्ड दान लेने के लिए धरती पर आते है। श्राद्ध से प्रसन्न होकर पितर अपनी संतान, अपने परिवार को आयु, वृद्धि तथा धन, विद्या, मोक्ष, सुख, यश, कीर्ति, बल, लक्ष्मी, अन्न, द्रव्य, स्वर्ग तथा सुख प्राप्त होने का आशीर्वाद देते है।
Comments
Post a Comment