न खाली हाथ आता है, न जाता है। भाग्य लेकर आता है और कर्म लेकर जाता है इंसान || Suresh Shrimali


न खाली हाथ आता है, न जाता है। 
भाग्य लेकर आता है और कर्म लेकर जाता है।


आपने निश्चित ही सुना होगा कि इंसान खाली हाथ आता है और खाली हाथ चला जाता है। सब धन-दौलत, प्रतिष्ठा-यश-कीर्ति, पुत्र-पौत्र, सगे-संबंधी, सब यहीं रह जाते हैं, कोई साथ नहीं चलता। यह बात कोई मामूली व्यक्ति नहीं कह रहा है बल्कि हमारे बुजुर्ग, हमारे संत-महात्मा और ज्ञानी जन तक यह बात कहते हैं। लेकिन मैं इस बात को नहीं मानता। मेरा निश्चित मनना है कि इंसान न तो खाली हाथ इस दुनिया में आता है और न ही खाली हाथ इस दुनिया से जाता है। जब इंसान जन्म लेता है तो अपने साथ अपना भाग्य लेकर आता है और जब जाता है तो अपने साथ अपने कर्म लेकर जाता है। अगर आपको इस पर विश्वास नही है तो मैं दिलाऊंगा वह विश्वास जो आपको, आपके परिवार को खुशियों, उमंगों, सुख-शांति की खुशबू से भर दें, हर पल महका दें। मुझे सुनिये, मेरी सुनिये, फिर फैसला कीजिए कि आप कितने सेंस्टिफाई हुए, प्रश्नों के लदे बोझ से कितने मुक्त हुए ? 


बैचेनी और अशांति को जन्म देते हैं प्रश्न 

यह सत्य है कि सुख चाहते हों तो रात में जागना नहीं, शांति उन्नति चाहते हो तो दिन में सोना नहीं, आदर-सम्मान चाहते हो तो व्यर्थ में बोलना नहीं और प्यार-स्नेह चाहते हो तो अपनों को छोडना नहीं। लेकिन यह सब इतना आसान, इतना सरल नहीं कि ऐसा ही हो? क्योंकि इस सबके साथ कई प्रश्न जुड़े हैं, कई समस्याएं जुड़ी हैं। सच तो यह है कि पूरा जीवन प्रश्नों से जुड़ा है। जीवन की प्रत्येक घटना जो मन में हलचल उत्पन्न करती है, अनायास ही नए प्रश्नों को जन्म देती है। इसी तरह परिस्थितियां और परिवेश स्वाभाविक ही अंतस चेतना में प्रश्नों को जन्म देती है। प्रश्नों का क्रम न कम हो सकता है और न थमता है, बस नित्य-निरंतर-अविराम चलता रहता है। वस्तुतरू प्रश्न कई प्रकार के होते हैं। जिज्ञासा वश मन में उठने वाला भाव प्रश्न है। प्रश्न के बाद पुनः पूछने का क्रम प्रति प्रश्न है तो कुछ लोग किसी विषय पर इतने प्रश्न पूछते हैं कि मूल विषय से ध्यान ही भटक जाए ऐसा करना-अतिप्रश्न है और अनावश्यक भी। प्रश्न कोई भी हो, वह मन के मौन को तोड़ता है। मन में अशांति, बेचैनी व तनाव को जन्म देता है। ये प्रश्न जितने अधिक, जितने गहरे व जितने व्यापक होते हैं, मन की अशांति, बैचेनी व तनाव भी उतना ही ज्यादा गहरा और व्यापक होता जाता है। इसी अशांति, बैचेनी और तनाव में अपनी ही कोख में उपजे प्रश्न या प्रश्नों के उत्तर खोजने की व्यक्ति कोशिश करता है। प्रश्नों से मन में लहरें, हिलोरें उठती हैं, जो मन को तनाव, अशंाति, बैचेनी से ही भरेगी। लेकिन जब प्रश्न स्वयं से ही होने लगे, मन में प्रश्न उठने लगे कि सभी सुखी है, मैं ही दुखी क्यों, सभी का विवाह हो गया मेरा ही क्यों नहीं होता, व्यापार कर सभी मुनाफा कमाते है, मैं ही नुकसान क्यों उठाता हूं? ऐसे प्रश्न उभरेंगे तो उसके उत्तर की खोज होगी, मन ही सवाल कर रहा है तो मन उत्तर नहीं दे सकता। बस, मैं इसीके लिए आप सबके सामने आकर ऐसे कई प्रश्नों के उत्तर देना चाहता हूं ताकि आप की बैचेनी, अशांति खत्म हो सके, आप संतुष्ट हो जाएं मैं चाहता हूं कि आपको प्रश्न मुक्त, प्रश्न विहीन अमिट शांति प्राप्त हो। मैं चाहता हूं आपके चेहरे पर संतुष्टि की मुस्कान, आपके मन की प्रसन्नता आपके भाव में आपकी आंखों में, आपके चेहरे पर झलक उठे तो आईए, पहले उन प्रश्नों को बताएं जो जरूरी हैं।



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