शनि जयंती || Suresh Shrimali


शनि जयंती 


‘‘शनैश्चरति इति शनैश्चर‘‘
‘‘निलाज्नन समामासं रवि पुत्रम् यमाग्रजम
छाया मार्तण्ड सम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्‘‘

अर्थात् धीरे-धीरे मंदगति से चलने वाला ग्रह है, शनि। नीला है शरीर जिनका, जो यम के अग्रज है, देवी छाया और ग्रह राज सूर्य के पुत्र है। ऐसे शनि देव को हम प्रणाम करते है।

इस साल 18 अप्रैल को शनि धनु राषि व पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में प्रातः 7 बजकर 17 मिनट पर वक्री होंगे और 06 सितम्बर को सांय 04 बजकर 40 मिनट पर शनि मार्गी हो जायेंगे। 

दिनांक 15 मई मंगलवार, सांय 05 बजकर 17 मिनट तक प्रथम ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की अमावस्या रहेगी। इसलिए इस बार 15 मई को शनि जयंती मनाई जायेगी। 

नवग्रह देवों में सबसे अलग शनि यानि शनैष्चर देव भले ही एक मात्र दण्ड अधिकारी न्यायाधीष, जेलर क्यों न हो इनके रंग-रूप, क्रोध, तिरछी नजर से भय क्यों न लगता हो पर इन्हें भी संकट, दुख एवं परेषानियों का सामना करना पड़ा है। 
जहां एक तरफ इनका काला रंग होने पर गौरवर्णी माता के चरित्र पर लांछन लगा तो वहीं पत्नी ने इन्हें श्राप देकर आजीवन नपुसंक रहने की सजा दे दी। 
रावण के गदा प्रहार से इनका एक पैर लंगड़ा हो गया। इसलिए ये न दौड़ सकते है और ना ही तेज चल सकते है। 
अपने शरीर के रंग से काले, लगड़े होने से महाभारत के मामा शकुनी की तरह चाल में टेढे अधिकतर अपनी तिरछी नजर से किसी को भी आबाद से बर्बाद कर देने वाले ऐसे देव पर क्या-क्या गुजरी, कौनसे कष्ट सहे इनके साथ कब क्या-क्या गजब हुआ आइए जानते है -

आम तौर पर शनि का नाम आते ही हम सब सहम जाते हैं, घबरा जाते है, परेषान हो जाते है और माथे पर चिंता की लकीरें खिंच जाती है। यह सच है कि शनि क्रूर ग्रह है, लेकिन यह धारणा असत्य है कि शनि केवल कष्ट ही देते है या दण्डित ही करते है। यदि शनि कष्ट देते है, दण्डित करते है तो शुभ स्थिति में स्थित हो तो निहाल भी कर देते है। 
दरअसल शनि बिना बात किसी को कोई कष्ट नहीं देते है वे तो न्यायाधीष है। जो व्यक्ति जैसा कर्म करता है शनि उन्हें उनके कर्मों के अनुसार फल प्रदान करता है। अषुभ कर्म करने पर दण्डित तो शुभ कर्म करने पर निहाल कर देते है। इसीलिए कहा गया है कि -

‘‘शनि राखै संसार में हर प्राणी की खैर।
न काहु से दोस्ती न काहु से बैर।।

सच बात तो यह है कि शनि देव अत्यंत क्रोधी होते हुए भी भगवान शिव और भक्त हनुमान जी से भी अधिक दयालु और कृपालु है। 
  कृष्ण भक्त, नेत्रहीन, सूरदास ने सच ही कहा है कि ‘‘सूरदास की काली कमरिया चढ़े न दूजो रंग’’ इसी संदर्भ में शनि देव के प्रिय काले रंग की विषेषता और महत्व देखिए- 
सभी विद्वान, सम्मानीय न्यायाधीष तथा वकील काले रंग का कोट पहनते है ताकि उस पर कभी भी अन्याय का रंग न चढ़ पाएं और संभवतः इसी कारण न्याय की प्रतिमा की आंखों पर पट्टी भी काले रंग की बंधी हुई है। क्योंकि शनि देव स्वयं भी न्यायाधीष देव है वह अन्यायी, अधर्मी, पापी के लिए काले काल रूप है तो धर्मप्रिय, न्यायप्रिय, नीतिप्रिय लोगों के लिए बड़े दिलवाले है। शनि देव का रंग भले ही काला क्यों न हो परन्तु उनका दिल काला नहीं है। 

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